
रायपुर(khabarwarrior)प्रदेश बीजेपी में इस वक़्त प्रदेश अध्यक्ष को लेकर काफी असमंजस की स्थिति बनी हुई है।काफी लंबे समय से अध्यक्ष को बदले जाने की सुगबुगाहट चल रही है ।वर्तमान में आदिवासी नेता विक्रम उसेण्डी अध्यक्ष हैं, उन्हें विधानसभा में करारी शिकस्त के बाद वर्तमान नेताप्रतिपक्ष धरम लाल कौशिक की जगह लाया गया था।
उसेंडी के नेतृत्व में बीजेपी नगरीय निकाय व पंचायत चुनावों में कुछ खास प्रदर्शन नहीं कर पाई ।ये बात अलग है कि उसेण्डी को शुरू से ही अन्यरिम अध्यक्ष के रूप में ही देखा जाता रहा गया।
बीजेपी राष्ट्रीय नेतृत्व से बदलाव के संकेत के सांथ प्रबल संभावनाएं देखी जाने लगी, कुछ ओबीसी, व सामान्य वर्ग से भी कुछ नाम सामने आए,कुछ को तो बधाइयां भी मिलने लगी थी।
कौन पड़ेगा किस पर भारी…
वर्तमान में जब आदिवासी नेतृत्व की बारी आई तो पहली बात यह आयी कि वर्तमान अध्यक्ष को बदला जाना कितना और क्यों जरूरी है,उस हिसाब से विकल्प तलाशे जाने लगे,जिसमे कुछ नाम सामने भी आये लेकिन बड़ी बात यह सामने आई कि आदिवासी नेताओं की इच्छा प्रदेश अध्यक्ष बनने के बजाय 28 फरवरी 2020 को खाली हो रहे राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग के अध्यक्ष पद पर ज्यादा दिखी ।यह पद केंद्रीय मंत्री का है और राष्ट्रीय नेतृत्व सो अलग।इस पर अभी प्रदेश के कद्दावर आदिवासी नेता नंदकुमार साय विराजमान हैं
भाजपा ओबीसी कोटे से नेता प्रतिपक्ष बना चुका है इसलिए ओबीसी की बात सिर्फ हवा हवाई लग रहा है,यह जब तक संभव नहीं है जब तक नेता प्रतिपक्ष न बदला जाए। निष्क्रियता के आरोप के बाद भी नेता प्रतिपक्ष का बदलना भाजपा विधायको के सियासी समीकरणों बीच फील हाल मुश्किल दिख रहा है।
अब आदिवासी और ओबीसी के बाद चर्चा सामान्य वर्ग की भी होने लगी, इसमे भी कुछ नाम सामने आए लेकिन किसी को किसी का करीबी तो किसी को अन्य कुछ कारणों से विरोध के चलते अभी तक मामला ठंडे बस्ते में दिख रहा है।लेकिन वर्तमान मेंप्रदेश की राजनीतिक समीकरणों के हिसाब से आदिबासी नेतृत्व भारी जरूर नजर आ रही है।
अब ये देखना होगा कि ऊंट किस करवट बैैैठता है और कब तक प्रदेश भाजपा को नया अध्यक्ष मिल पाता है।सांथ ही राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग पर प्रदेश के नेताओं को मौका मिल पाएगा कि नहीं।