भिलाई((खबर वारियर) भिलाई के सेक्टर 9 अस्पताल में महिला डॉक्टरों, स्टाफ नर्सो व तमाम अटेंडेंट ,सेनेटरी की महिला कर्मियों से मुलाकात कर मरीजो के प्रति समपर्ण, त्याग, तमाम जिम्मेदारियों को ईमानदारी पूर्वक निभाने ,महिलाओ के संघर्षो को नमन करते हुए अंतराष्ट्रीय महिला दिवस पर हिंदुस्तान इस्पात ठेका श्रमिक यूनियन सीटू के प्रतिनधियों ने गुलदस्ता भेट कर दी बधाई।
इस दौरान यूनियन के अध्यक्ष जमील अहमद, महसचिव योगेश सोनी, कमलेश चोपड़ा , विकास, महिला लीडर दुर्गा साहू,व अन्य साथी उपस्तिथ थे ।
भर्ती मरीजों को गुलदस्ता भेंट कर कहा गेट वेल सून
यूनियन के प्रतिनधि ने हॉस्पिटल में भर्ती मरीजों ओर उनके परिजन से भी मुलाकात की ओर अंतराष्ट्रीय महिला दिवस पर बधाई देते हुए जल्द स्वस्थ होने के लिए शुभकामनाये देकर गुलदस्ते भेट किया ।
सबसे बड़ी योद्धा होती है महिलाए :- जमील
पैदा होने से शुरू होती है संघर्ष की कहानी जो अंतिम सांस तक चलती है…
महिला दिवस पर सेक्टर 9 में अपना इलाज करने आई 80 वर्षीय बुजुर्ग महिला को गुलदस्ता भेट कर कहा कि सबसे बड़ी योद्धा होती हैं महिलाए और उनमें माँ का दर्जा सर्वश्रेष्ठ है,माँ
मां अर्थात माता के रूप में नारी, धरती पर अपने सबसे पवित्रतम रूप में है। माता यानी जननी।तमाम कष्ट और ओर पीड़ा को झेलते हुए मा सदैव अपने बच्चो व परिवार के लिए जूझती रहती है माँ के लिए कोई शब्द ही नही मा तो माँ होती है महिला दिवस पर माँ को नमन करते हुए उनके जज्बे ओर संघर्ष को नमन कर महिला दिवस पर बधाई दी।
दबाव और जिम्मेदारियों के बावजूद चेहरे पर रहती है मुस्कान:
हॉस्पिटल के स्टाफ ने कहा मेन पावर की कमी और मरीजो की संख्या में इजाफा के बावजूद हमारे चेहरे पर हमेशा मुस्कान रहती है और यह जज्बा सदैव बना रहेगा आज सेक्टर 9 हॉस्पिटल हमारे इस जज्बे से ही पहचाना जाता है ।
दोहरी जिम्मेदारियां निभांते है हम
एक तरफ परिवार की पूरी जिम्मेदारी दूसरी तरफ मरीजो की हम महिलाओ को दोहरी जिम्मेदारी निभानी पड़ती है जब हम ड्यूटी में होते है तो रात भर पलक झपकने का समय भी नही होता फिर घर जा कर परिवार और बच्चो की जिम्मेदारी निभानी पड़ती है और प्रत्येक जिम्मेदारियों को ईमानदारी से निभांते है।
महिला दिवस रश्म अदायगी न बने- सोनी
यूनियन के महासचिव योगेश सोनी ने कहा की महिला दिवस का औचित्य तब तक प्रमाणित नहीं होता जब तक कि सच्चे अर्थों में महिलाओं की दशा नहीं सुधरती। महिलाओ पर कानून और नियम तो बनाये गए हैलेकिन क्या उसका क्रियान्वयन गंभीरता से हो रहा है। यह देखा जाना चाहिए कि क्या उन्हें उनके अधिकार प्राप्त हो रहे हैं।
वास्तविक सशक्तीकरण तो तभी होगा जब महिलाएं आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर होंगी। और उनमें कुछ करने का आत्मविश्वास जागेगा।यह महत्वपूर्ण है कि महिला दिवस का आयोजन सिर्फ रस्म अदायगी भर नहीं रह जाए। महिलाओं में अधिकारों के प्रति समझ विकसित हो और वो मुखर हो कर आगे आये अपनी शक्ति को स्वयं को समझकर, जागृति आने से ही महिला अत्याचारों से निजात पा सकती है। कामकाजी महिलाएं अपने उत्पीड़न से छुटकारा पा सकती हैं अपने अधिकारों और शोषण के खिलाफ मुखर हो कर सामने आने पर ही महिला दिवस की सार्थकता सिद्ध होगी।
महिला लीडर सरोज सिन्हा व वाय. वेंकट सुबलु ने भी अंतरास्ट्रीय महिला दिवस पर अपने विचार रखे।