कोरोना वायरस,जानकारी, बचाव,और अंधविश्वास.
आलेख-डॉ. दिनेश मिश्र,
रायपुर(खबर वारियर)कुछ समय से विश्व कोरोना वायरस के संक्रमण से जूझ रहा है जिसमें दुनिया भर के 190 से अधिक देशों के नागरिक संक्रमित हो चुके हैं ,भारत के भी करीब 23 प्रदेशों के किसी ना किसी हिस्से से मरीजों के कोरोना से संक्रमित होने की खबरें सुनाई पड़ती है।
पूरे विश्व में 5लाख 40 हजार से अधिक लोग कोरोना के संक्रमण के शिकार हुए हैं ,24 हजार से अधिक लोगों की मृत्यु भी हो चुकी है और बहुत सारे लोग अभी भी अस्पतालों में भर्ती है, जो अस्पतालों में स्वास्थ्य लाभ प्राप्त कर रहे हैं।
मीडिया के प्रचार-प्रसार से कोरोना की चर्चा लगभग सभी जगह पहुंच चुकी हैं इसके संबंध में लोग आशंकित भी हैं ,अपने स्वास्थ्य को लेकर, अपनी जान को बचाने के लिए।
अंधविश्वास व भ्रम के बजाय वैज्ञानिक तरीके से हो बात,
ऐसे में जब पूरे लोगों को सही वैज्ञानिक तरीके से कोरोना के फैलने, उसके संक्रमण, उसका उपचार ,उसका बचाव के बारे में बातचीत होना चाहिए तब बहुत सारे लोग इस वायरस संक्रमण के बारे ,उसके उपचार के बारे में भी अजीबोगरीब बातें फैला रहे हैं और अंधविश्वास तथा भ्रम फैला रहे हैं।
जैसे कोई गोमूत्र पिलाने से ,तो कोई गाय का गोबर से नहाने से ,कोई ताबीज पहनाने से तो कोई झाड़ फूंक करने से,तो कोई हर्बल टी पीने,तो कोई विशेष गद्दे में सोने से संक्रमण खत्म करने की बात प्रचारित कर रहे हैं।
किसी भी बाबा,के द्वारा फैलाये गए प्रपंच में फंसने के पहले जरा सोचिए ,कि यदि गौमूत्र पीने,गोबर से नहाने से,किसी झाड़ फूंक,ताबीज,चाय,गद्दे में सोने से कोरोना या कोई बीमारी ठीक होती तो हमारे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और स्वास्थ्य मंत्री डॉ हर्षवर्धन नागरिकों को साफ सफाई से रहने ,बार बार हाथ धोने,सोशल डिस्टेंस, दूरी बना कर रहने देने की सलाह देने की बजाय नेशनल मीडिया में नागरिकों को गौमूत्र पीने,गोबर में लेट कर ठीक होने ,ताबीज,झाड़ फूँक का नायाब इलाज खुद क्यों नहीं बताते।
अन्य देशों की तरह भारत सरकार भी इस मामले में विश्व स्वास्थ्य संगठन एवं चिकित्सा विशेषज्ञों के द्वारा वताये गए प्रोटोकाल का ही पालन कर रही है,
पिछले दिनों दिल्ली के पास एक तथाकथित बाबा चक्रपाणी ने कोरोना वायरस के संक्रमण को खत्म करने के लिए गोमूत्र पार्टी आयोजित की, तो कहीं कुछ लोगों को गोबर से भरे गड्ढे में डुबकी मारते ,लगाते भी देखा गया।एयरपोर्ट में आने वाले लोगों को गौमूत्र पिलाने,गोबर से नहलाने की मांग की और कुछ लोगों को पिलाया.साथ ही भारत ही नहीं विदेशों से भी इलाज केअजीबोगरीब दावे सामने आने लगे।
जबकि राष्ट्रीय एवं अंतरराष्ट्रीय प्रोटोकाल के चलते देश भर में सामाजिक, धार्मिक कार्यक्रम, खेल, क्रिकेट मैच, समारोह,स्थगित किये जा चुके है,राष्ट्रपति ,प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्रियों ने भी अपने अपने सार्वजनिक कार्यक्रम स्थगित कर दिए है,,मंदिर,मस्जिद, चर्च,मॉल,ट्रेनें, फ्लाइटस्कूल, कॉलेज बन्द हो चुके है,, यही हालत विदेशों में भी है।
नागरिको से भीड़ भाड़ में न जाने,साथ सफाई से रहने,हाथ धोने,की बार बार सलाह दी जा रही है तब गौ मूत्र,पार्टी,गोबर के सामूहिक कार्यक्रम आयोजित करना कैसे उचित ठहराया जा सकता है।
पुलिस ने उत्तर प्रदेश में एक तथाकथित बाबा को कोरोना से मुक्ति का ताबीज बेचते भी हिरासत में लिया और कोरोना की झाड़ फूंक करके स्वस्थ करने वाले कुछ बैगा भी सामने आये, इसके साथ ही विभिन्न प्रकार के तरीकों से अलग-अलग स्थानों में काम कर रहे कतिपय लोगों ने देसी विदेशी तौर तरीके प्याज ,लहसुन, नीबू से भी कोरोना को खत्म करने की बात और दावे किये जाने लगे।
जिन देशों से कोरोना के पॉजिटिव मामले मिले है और उन देशों में भी जहां काफी लोगों की मृत्यु हुई है,उनके सम्बन्ध में विश्व स्वास्थ्य संगठन ने भी वर्तमान में इस संक्रमण से कोई उपयुक्त दवा उपलब्ध ना होने वैक्सीन उपलब्ध ना होने की बात कही है और लोगों से इस संक्रमण के फैलने से बचाव करने की बात ही कही है, पर उसके बाद भी अलग अलग किस्म के भ्रामक दावे सामने आते हैं।
कोरोना एक प्रकार का वायरस
यहां यह बताना जरूरी है कि कोरोना एक प्रकार का वायरस है,जिसे खोजा बहुत पहले जा चुका था,पर महामारी अभी हुई है ,कोरोना संकमण में, पहले तो कुछ समय तक व्यक्ति लक्षण प्रकट नही होते पर धीरे धीरे उस व्यक्ति को खांसी बुखार और फेफड़े में संक्रमण होता है, और सांस लेने की तकलीफ के कारण उसकी मृत्यु हो जाती है पर यदि सही समय पर उस व्यक्ति को सही चिकित्सा मिल जाती है तो उसकी जान बचाई जा सकती है ।
यह वायरस हवा के माध्यम से नहीं फैलता बल्कि एक मरीज से दूसरे मरीज में फैल सकता है, इसलिए बचाव के लिए मास्क पहनने ,एक से दूसरे रोगी से हाथ नहीं मिलाना ,हाथों को बार-बार सैनिटाइजर,साबुन ,पानी से धोने से बचाव के तरीके विश्व स्वास्थ्य संगठन एवं चिकित्सकों द्वारा कही जा रही है, ताकि उसका फैलाव कम हो सके। तथा यदि किसी व्यक्ति को हुआ भी है तो उसे अपने आप को अलग-थलग कर लेना चाहिए, ताकि उसके माध्यम से घर के दूसरे व्यक्तियों में संक्रमण न फैले।
अभी भी जानकारी के अभाव डर और भ्रम के कारण कुछ मरीजों ने ना तो अपने संक्रमित होने की बात जाहिर की बल्कि कुछ लोग तो अस्पतालों में भर्ती होने के बाद भी लापता हो गए ,जिन से दूसरे व्यक्तियों को संक्रमण फैल सकता है इसलिए आवश्यक है कि इस संबंध में व्यक्ति को ईमानदारी से सोच समझकर न केवल अपना खुद का बचाव करना चाहिए, बल्कि दूसरे लोगों पर भी संक्रमण न फैले इसके बारे में सावधानियां सुरक्षित एवं सुनिश्चित करना चाहिए।
गोबर, गोमूत्र की सच्चाई
अब बात करनी पड़ेगी जो लोग गोमूत्र पीने से संक्रमण ठीक होने की बात कर रहे हैं, क्या इसमें कोई सच्चाई है तथाजो लोग गोबर के उपयोग से कोरोना के खत्म होने की बात करते हैं,क्या उसमें कोई सच्चाई है, गाय,भैंस,बकरी, मनुष्य, ऊंट,आदि स्तनपायी प्राणी है जिसमें से गाय, भैंस,के दूध का उपयोग हम पीने करते हैं,उसी प्रकार कुछ स्थानों में बकरी,के दूध ,तो राजस्थान के कुछ इलाकों में ऊंटनी के दूध का प्रयोग भी लोग करते हैं गाय का दूध भारत में सहजता से उपलब्ध है।
स्थानीय धार्मिक मान्यताओं के चलते गाय को माता का दर्जा दिया है,पर दूसरी बात है जिस प्रकार मनुष्य एक स्तनधारी प्राणी है और भी बहुत सारे स्तनधारी प्राणी ,क्या हम उनका मूत्र एवं मल बीमारियों के इलाज के लिए काम में लाते हैं, मनुष्य एवं सभ्य स्तनधारी प्राणी जो भी पानी पीते है वह शरीर में आवश्यकतानुसार उपयोग हो कर किडनी के द्वारा मूत्र के रूप में बाहर निकलता है तथा जो खाद्य पदार्थ ग्रहण करते हैं ,उसमें से भोजन के पाचन के बाद जो पदार्थ आहार नली में बचता है वह धीरे धीरे मलाशय से होते हुए मल के रूप में बाहर निकलता है।
उसी प्रकार गाय ,भैस भी जो पानी पीती हैं, खाना खाती है और वह उसके शरीर में किडनी और मलाशय से बाहर निकलकर मूत्र एवं मल के रूप में बाहर निकलता है, इसका किसी भी व्यक्ति द्वारा किसी बीमारी के इलाज में उपयोग करने में कितनी समझदारी है।
क्या है सच्चाई,
अलग-अलग क्षेत्रों में लोग उपलब्ध पशुओं का दूध पीते हैं जो कि वास्तव में उन पशुओं की संतानों के लिए उनके शरीर में बनता हैं पर क्या भैंस के मूत्र और बकरी के मूत्र और मल का ऊंटनी के मूत्र और मल का मनुष्य के मूत्र और मलका उपयोग करोना या किसी भी संक्रमण अथवा अन्य बीमारी के लिए करते हैं जो गाय के मूत्र ,मल का करने लगते हैं।
जबकि गाय या किसी प्राणी के मूत्र,गोबर से बीमारियों के ठीक होने के सम्बंध में न ही वैज्ञानिक तौर पर कोई परीक्षण हुए है,न कोई खोज हुई है,किसी रिसर्च पेपर में,यहाँ तक गूगल में भी इस सम्बंध में किसी सही वैज्ञानिक रिसर्च का उल्लेख नहीं है।सिर्फ मिथकों ,कही सुनी बातों,के आधार पर ही पूरा प्रोपेगैंडा रचा हुआ है।
अंधविश्वास निर्मूलन अभियान के चलते मेरा ग्रामीण अंचल में जाना होता है जिन गोशाला में और जहां पर एक से अधिक गाय हैं ,वहां भी पर यदि गाय के मल और मूत्र को नियमित रूप से नहीं फेंका जाता तो वहां पर उसमें मक्खी ,मच्छर, कीड़े,संक्रमण एवं इतनी दुर्गंध आने लगती है कि बाहर से ही वहां सांस लेना मुश्किल जाता है,और उससे गांव में संक्रमण फैलने की आशंका रहती है ।
इसलिए अनेक स्थानों में इंसानों और पशुओं के लिए भी अलग अलग तालाब बनाये जा रहे ताकि संक्रमण न फैले, क्योंकि वास्तव में मूत्र एवं मल अपशिष्ट पदार्थ है जो अनुपयोगी होने के कारण हर प्राणी अपने शरीर से नियमित रूप से बाहर निकालता है।
न तो यह कोई औषधिक पदार्थ है पर कुछ आस्था और कुछ अंधविश्वास के कारण लोग भ्रम में पड़े रहते हैं और दूसरों को भी भ्रम में डालने काम किया करते हैं ।
गाय सहित किसी भी पशु के मल मूत्र, पसीने, आंसू,नाक,कान से स्त्रावित होने वाले अनुपयोगी पदार्थ से मनुष्य पशुओं की किसी भी बीमारी के ठीक होने यह रुकने के बाद भी एक मिथक ही है । जिस प्रकार अन्य वायरल संकमण फैलते है ।
उसी प्रकार कोरोना भी एक प्रकार का वायरस है जिसके संकमण से सावधानी पूर्वक रहने पर बचा जा सकता है ,तथा समय रहते डॉक्टरी सलाह,व उपचार से संक्रमण से ठीक हुआ जाना संभव है ,दहशत,डर ,भ्रम एवं अंधविश्वास का शिकार होने से बचे।
पूरे विश्व मे इस वायरस का संक्रमण फैल चुका है,लेकिन अब तक इसका निश्चित इलाज कहीं भी उलब्ध नही है, अभी कुछ देश मे इसके वैक्सीन बनाने के प्रयास चल रहे है,उम्मीद है,इसमें सफलता जरूर मिलेगी,और अन्य महामारियों की तरह इससे भी निपटने में सफल होंगे।