जय…सिया_राम…
सिया..,राम….!
आलेख-होमेन्द्र देशमुख भोपाल-9425016515
सुबह , दरवाजे के बाहर ट्राइसिकल पर सवार हो एक दिव्यांग ब्राम्हण आया । हम ज्यादा तिथि-विथि नही देखते । वह हर एकादशी ही आता है ,लेकिन उसके आसपास यदि कोई पर्व हो तो एकादशी की जगह उसी दिन आ जाता है । उस दिन महाष्टमी थी ।
एक वायरस ने आज हमारे जिंदगी का कथित फलसफा पलट दिया है । चाहे वह सच हो या झूठ का आवरण – दूध या पानी , सब जगजाहिर हो गया । उस वायरस के प्रकोप से बचने को कोई क्वेरेन्टाइन में है- कोई लॉकडाउन में ।
बाहर का संसार चंद कमरों में सिमट गया है । कहते हैं , पानी रुकता है तो उसमें सड़ांध हो जाती है , बदबू उठने लगती है । उस बदबू से बचने ,बड़े सलाह, ध्यान,ज्ञान,धर्म फिर से परिभाषित किये जा रहे हैं । विश्व महामारी, मरने से भी ज्यादा वायरस लगने का खौफ !
शारीरिक रक्षा का डर हमे मानसिक रूप से कमजोर कर सकता है । टीवी पर रामायण और महाभारत धारावाहिक दिखाए जा रहे हैं । माता की उपासना, नवरात्रि के महाअष्टमी का दिन , ऐसे में द्वार आया पंडित खाली हाथ जाए..
‘ डर‘ किसी भी चीज का हो ,जब मन मे बैठ जाए तो मनोविज्ञान अच्छा सहारा है और अगर वह मनोविज्ञान धर्म का हो तो भारत मे और भी अच्छा ।
हौसला हिम्मत मानसिक तनाव, आराम योग और न जाने क्या क्या..
जमाने की बात जमाना जाने ..!
मैं तो पत्रकारिता के पेशे में होने के कारण, अपनी और अपने कुछ जानने वालों की बात करता हूं ।
अपार्टमेंट के मुख्यद्वार से सटे होने के कारण फ्लैट की बालकनी से मैंने उस पंडित को जरा रूक जाने का इशारा किया । मैं क्वेरेंटाइन के कारण कमरे से निकल नही सकता था । पत्नि पूजा में बैठी हैं ,बेटा कहीं मेरी आवाज के पहुँच से दूर है । कहीं कोरोना का प्रकोप न पकड़ ले, अगर आज घर से खाली हाथ जाएगा पंडित !
किसी तरह बेटे ने मेरी पुकार सुन ली और ग्यारह रुपये लेकर दरवाजे पर गया । तब तक बिल्डिंग के कुछ और परिवार वहां पहुच गए, मैंने देखा , बेटे ने सोशल डिस्टेंसिंग पंडित जी से तो रखा लेकिन पड़ोसियों से नही रखा । वापस आने पर मैंने कमरे से ही उसे डांट पिला दी ।
पत्रकार , विचारक, बुद्धिजीवी कहलाता है ।उनके खास लक्षण होते हैं । आमतौर पर वे धर्म के दिखावे में ज्यादा यकीन रखने वाले नही माने जाते या ऐसा व्यक्त किया जाता है । घर मे तलवार और कलम की पूजा करता है लेकिन किसी लड़ाकू विमान पर नारियल चढ़ाने और दरवाजे पर नींबू मिर्च टांगने वालों की सख्त आलोचना करता है । लेकिन बात जब अपनी जान पर बन आए तो राम-नाम सब दुःख हर लीन्हा..
उनका दोष नही है, न ही यह दोहरा व्यवहार है । यही एक बारीक फर्क है । जिसे दोहरा चरित्र नाम दे दिया जाता है वह केवल बाह्य और स्वयं के अस्तित्व के बीच का फासला मात्र है । बाहर यानि व्यवसाय और स्वयं वह जिसमे घर भी शामिल है । पर स्वयं का वह अस्तीत्व है क्या..
पंडित को 11 रुपया का दान दे कर , मंदिर में घण्टियां बजा और जोत जलाकर , किसी बाबा जटानंद के चरणों मे दंडवत कर, क्या हम कोरोना से बच जाएंगे ..?
एक कलाकार संतूर बजाता है । मगन हो जाता है । इतना मगन कि लगभग डूब जाता है उसे न अपनी ख़बर , न जमाने की । एक पेंटर पेंटिंग बनाते रंगों में खुद डूब जाता है । गायक ,संगीतकार लेखक हो या पत्रकार ! बुद्धिजीवी इसीलिए कहलाता है ।
उसे ये फ़िकर ही नही होती कि लोग क्या कहेंगे । एक गांठ बन गया है जुनून की हद तक । उसी को खोलता बंधता रहता है या उधेड़बुन का प्रयास करते रहता है । असल मे वही उसका मूल धर्म है ।
मेरे घर के हॉल में टीवी चल रहा है । रामायण खत्म ,महाभारत सीरियल का इंतज़ार । बीच मे एक फ़िल्म OMG फ़िलर का काम कर रही है । तेज आवाज में डायलॉग सुना । सीन में उसके पात्र कांजी भाई का घर गिर गया और कोर्ट में मुआवजे का केस की सुनवाई हो रही है ।
कांजी भाई बने परेश रावल कटघरे में खड़े किसी जटानन्द से भरी अदालत में पूछ रहे हैं -आपको ये किसने बताया कि शास्त्रों में लिखी हर बातें सच हैं और उसे सभी को माननी ही चाहिए-जटानंद बने मिथुन दा ने उससे भी तेज आवाज में जवाब दिया ,
-गीता का चौथा अध्याय चालीसवां श्लोक …
‘श्लोक सुनाया और अर्थ बताया – ”गीता में लिखा है कि शास्त्र में लिखी बातों का जो मनुष्य पालन करने के बजाय शंका करेगा वह सबसे बड़ा अधर्मी होगा । उसे इस जन्म में विनाश और उसे अगले लोक में दुःख मिलेगा ।”
परेश रावल ने प्रतिप्रश्न के अंदाज में उदाहरण देते हुए गीता के अध्याय नौ का दसवां श्लोक दाग दिया और भावार्थ बताया –
”सम्पूर्ण जगत मेरे अधीन है ,इसकी उत्पत्ति और विनाश मेरी इच्छा पर है ..”
फिर मेरे किसी विनाश की जिम्मेदारी मेरी क्यों…! ईश्वर की क्यों नही ..?
पिछली रात एक कहानी पढ़ी थी । व्यवसाय में भारी नुकसान से आहत एक बुजर्ग ,रात को आत्महत्या करने समंदर में कूदने ही वाला था कि उसे पीछे से किसी चुड़ैल ने पकड़ लिया । उसके दुःख के तीन कारण थे ।
पहला – पास में पैसे नही ,
दूसरा- बुजुर्ग हो गया ,
तीसरा – पत्नि भी बुजुर्ग हो गई ,
अब जीने का क्या फायदा ……..
सुबह तक उसकी तीनो इच्छाएं पूरी करने के बदले चुड़ैल ने सुबह होते तक का समय अपने साथ बिताने की शर्त रखी । एक तरफ सदियों पुराने नर-कंकाल रूपी बदसूरत बुढ़िया चुडैल , लेकिन दूसरी तरफ धन-आयु- सुंदर पत्नि की इच्छाएं पुनः पूरी होने के लालच में वह बुड्ढा भी आ गया ।
जैसे तैसे सुबह हुई । चुड़ैल को रात की तीनों बात याद दिलाई । चुड़ैल , मुकर गई..! अपनी उम्र देखा है , साठ साल के बुड्ढे, लालची , तुम्हें चुड़ैलों में यकीन है ! अब जीकर क्या करेगा । जा कूद के मर जा , मुझे क्या ।
सपना टूट गया,अच्छा हुआ सपना था,,
ज्यादातर लोग इन्ही सपनों को पूरा करने के उपाय को धर्म मान बैठे । बाह्य धन सुख आयु सौंदर्य पाने की इच्छा से यदि उपवास दान पूजन किया जाय वह धर्म नही । धर्म और उसके आचरण अपने अंदर को जगाने का होना चाहिए । किसी लालच मजबूरी और दिखावे का नही ।
धर्म हमारे निज में निवास करता है धर्म । जीवन के कुछ अनुसाशन ही धर्म नही । चार बजे सुबह उठकर घर को सिर पर उठा लिया । फूल ,नारियल लाओ, अगरबत्ती जलाओ ,घंटा बजाओ, शांत रहो, आग बनाओ हवन की वेदी सजाओ ,सब को अशांत कर दो । तब मिलेगी – शांति !
अनुसाशन शरीर के लिए जरूरी है । सुबह का उठना, मर्यादा, आचरण , मौन , व्यायाम ,ताजी हवा हमे उम्र देगी और अपने काम के प्रति समर्पण का भाव हमारे मन और शरीर को वही शांति देगी ।
जो ऐसा आचरण और सोच रखता है वही बुद्धिजीवी है ।
जो जानता है पहचानता है कि अगर ‘धर्म’ पकड़ लेने की चीज होता और अगर कहीं दूर भी होता तो वहाँ तेज चल कर पहुच जाते । और जब दुःख का या मरने का डर हो तब क्या हम उसे पकड़ने और तेज चलेंगे ?
धर्म एक स्वभाव है ,मैं ही हूँ ,मेरी निजता है । उसे बाहर कहाँ खोजेने जाएंगे हर व्यक्ति के अंदर अपना ‘स्व’ है वह बंधा हुआ एक ग्रन्थि है ।
हमें तो बस हमेशा अपने अंदर की उस गांठ या ग्रंथि, complexes को सृजनात्मक रूप से प्रकट करना चाहिए ।
यही काम लेखक कवि दार्शनिक और कलाकार करता है।इसीलिए इन वर्ग को बुद्धिजीवी कहा गया intelactuals,
यह सृजन के काम करने वाले लोग हमेशा हर काम के लिए तैयार रहते हैं । इनकी कोई salary नही हो सकती, working houres नही हो सकते । do’s and dont’s नही हो सकते । जश अपजश हानि लाभ जीवन मरण इनके लिए बेमानी होते हैं
उसके अंदर एक शक्ति है । वह भली या बुरी । उससे विनाश भी हो सकता है ,निर्माण भी हो सकता है । केवल आप उपयोग किस ओर कर रहे हैं यह महत्वपूर्ण है । अपने क्रोध को काम को घृणा को बदलिए और उसका सृजनात्मक उपयोग करिये । अपने अंदर की शक्तियों को बुरी होने के बजाय transfermation करिये । वैसे ही जैसे पतझड़ के पत्ते, गाय के गोबर ,और सड़क का कचरा खाद बने और एक पेड़ के निर्माण में भगीदार बने ।
एक फूल को खिलाने में सहभागी बने । मनभावन हरियाली का कारण बने । जो जो शक्ति आप मे है वह आपका सौभाग्य है ,जो अंदर और प्रकृति से अपको मिला है वह आपका सौभाग्य है । आप जिसे कुरूपता और दुर्गुण मानते हैं वही आप मे सुगन्ध का कारण बनेगा ।
इसलिए आप क्रोधी हैं ,कामी हैं ,लंपट हैं यह आपका सौभाग्य है । अगर ये सब आप मे नही होते तो आप आज वह नही होते जो हो सके हो या होने की क्षमता रखते हो ।
जो आपके भीतर है उस पर गर्व करिये , बस उस दुर्गुण से जिसे आप मानते हों कि दुर्गुण है उसे शक्ति मानिए,
आप जो है जैसे हो यकीन हो कि आप श्रेष्ठ हैं ।
हां , दूसरे बुद्धिजीवियों के साथ साथ ” पत्रकार, अपने सिद्धान्त रूपी ग्रन्थ, संविधान रूपी शास्त्र उसके अध्याय, उसके श्लोकों की व्याख्याओं में भी बंधा होता है । पत्रकारिता उसका धर्म भी है ,पेशा भी ।”
किसी दुःख ,महामारी, पीड़ा ,अवसाद से बचने के लिए अपनाने से “धर्म” को नही अपनाया जा सकता और न ही ऐसा धर्म आपको विपदाओं से बचाएगा ।
पर हर सांसारिक व्यक्ति के जीवन मे एक बाह्य और एक अंतः साथ- साथ चलता है । करोडों लोग घरों में बंद हैं । उसका अंततः कारण है जीवन को बचाए रखना ।
मैं भी पिछले दस दिनों से एक कमरे में क़वेरेन्टाइन पर हूं । आज मैंने उस कमरे के जाले साफ किये । खिड़की के ग्रिल साफ किये । अपने चादरें साफ की । मेरे खुशनुमा आराम युक्त लॉकडाउन के लिए दिए नए चादर को मैंने तकियों के कवर के साथ धो दिया । सबके रंग एक दूसरे पर चढ़ गए ।
पत्नि अष्टमी के व्रत-पूजन से फुर्सत हुईं तो डांट की झड़ी लग गई । ज़रा सा हवन में क्या लगी । सारा तकिया चादर सत्यानाश कर दिया ।
कब खत्म होगा मुआ ये तुम्हारा क्वेरेंटाइन !
कौन उन्हें समझाए .. मेरे व्रत उपवास पूजन हवन आहुति और धर्म के कर्म अभी कहाँ खत्म होंगे ।
पंडित आशीर्वाद देकर चला गया..
जय..सिया-राम ।
आज बस इतना ही..!
(लेखक एबीपी न्यूज़ में सीनियर वीडियो जर्नलिस्ट हैं)