बैशाखी का पर्व और लॉकडाउन

अमित चन्द्रवंशी “सुपा”✍
इस वर्ष बैसाखी का पर्व कोविड 19 में छुप गई लेकिन विरासत में मिली यह पर्व खास ही नही अन्नदाताओं के लिए एक प्रमुख पर्व में से एक है ।जैसे छत्तीसगढ़ में छेरछेरा खरीफ फसल कटाई के बाद घरों में धान मागंते हुए बच्चे व बुजुर्ग सभी वर्ग के लोग मानते है।
वैसे ही पंजाब व हरियाणा के सभी वर्ग के लोग रबी फसल के पकने की खुशी में हिंदी महीना बैशाख से बना शब्द बैशाखी पर्व मनाते है। भगवान को धन्यवाद देते है प्रचुर मात्रा में फसल मिला उसकी खुशियां लोग मनाते है।
बैसाखी से जुड़ा हुआ या यह कहे शहीद हुए लोगो की श्रद्धांजलि हेतु बैसाखी का महत्व अधिक है, 1919 में आज ही के दिन जलियांवाला बाग हत्याकांड हुआ था।
हजारों लोग शहीद हो गए, बैसाखी का दिन था अपनी अरदास करने गये हुए थे नववर्ष की धुमधाम से बधाई दी जा रही थी, ढोल नगाड़ों के साथ भांगड़ा कर रहे थे, बच्चे बुजुर्ग महिला सभी वर्ग के लोग निहत्थे चढ़ गये।
यह ब्रिटिश इतिहास की सबसे शर्मनाक हरकत थी, जिसे ब्रिटीशस कितने भी धोने की कोशिश किये लेकिन कलंक कभी नही मिटा।
आज कोविड19 जलियांवाला बाग हत्याकांड की तरह है, लेकिन दोनों में अंतर है तो वह है मानवीय संवेदनाओं का, मानवीय संवेदना अंग्रेजो को दिखाई नही दी और वे निहत्थे पर गोली चलाने का हुक्म दे दिया।
कोविड 19 अदृश्य है जिसे आपस मे लड़ना पड़ रहा, कभी न दिखने वाले दुश्मन से सामना कर रहे है जिसे आपस मे मिलकर ही लड़ा जा सकता है अदृश्य शक्ति को खत्म करने की कोशिश जारी है। दुनिया के तमाम डॉक्टर वैक्सीन या दवा बनाने में जुटी हुई है।
जलियांवाला बाग व बैशाखी अलग है लेकिन 1919 के बाद एक सी हो गई है। अन्नदाता पर्व खुशियों के लिए मना लेता है लेकिन आज ही के दिन अपने पूर्वजों को खोने की श्रद्धांजलि देते है, उन सभी शहीदों को नमन।
यह घटना आजाद भारत के लिए लड़ रहे लोगो के मन मे अंग्रेज हुक्मरानों के प्रति आक्रोश बढ़ी और आजादी की लड़ाई में क्रांतिकारियों ने भाग लिया, भगत सिंह जी के ऊपर यह गहरी छाप छोड़ गई, भगत सिंह जी वह महसूस कर लिए क्या बीत रही थी वहां जब अंग्रेज गोली चलाये, आज भी दीवारों में गोली के निशान है।
आज भी वह कुआँ वहाँ मौजूद है जहाँ बचने के लिए लोग कुद पड़े जिसे आज हम शहीदी कुआँ के नाम से जानते है, स्मारक बनी हुई है जहाँ अमर ज्योति जलती है, स्मारक में शहीदों का नाम अंकित है।
पर्वो का क्या है वह हर साल आता है आज एकता, भाईचारे, प्रेम, अपनत्व, अनुभव व विज्ञान से हम कोविड 19 से लड़ सकते है, पर्व महामारी के हत्थे चढ़ गया है लेकिन समय के साथ हमारी सोच बदलती है ऐसे में जान है तो जहान है पर अमल करने की जरुरत है।
,फसल पकने की खुशियां हम कोविड19 को अलविदा करके मना सकते है, मानवीय संवेदनाओं को ध्यान में रखते हुए हमें अपने कार्यो को अंजाम देना चाहिए, नही तो हमे इतिहास में मिले भूल से कैसे सीखेंगे, विरासत में हमे बहुत कुछ मिला है, और महामारी से निपटने की जिम्मेदारी तो सबकी है।
-अमित चन्द्रवंशी “सुपा
(लेखक बीएससी के छात्र हैं,यह विचार इनके निजी हैं)