“कोरोना संकट और किसान”

आलेख- झबेन्द्र भूषण वैष्णव,🖍️🖍️
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“जरूरत तो इनके लिए भी ताली और थाली बजाने की है,,
आज जब पूरा देश कोरोना संकट के चलते घर में रहने को मजबूर हैं,देश के किसान आज भी खेतों में मिट्टी पानी से जद्दोजहद कर रहे हैं, इसलिए कि उसे चिंता है देश में किसी को भुखा न सोना पड़े, जीवन के लिए भोजन की जिम्मेवारी उसी के हिस्से में है।या शायद ये भय कि, अगर आज मैं फसलों को खाद पानी नहीं दे पाया तो मेरे जीवन का ख्याल किसे होगा।
कोरोना वारियर्स की भूमिका में लगे लोगों की सर्वत्र प्रशंसा हो रही है होनी भी चाहिए,आज देश को, उनकी मनोबल को बनाए रखना बहुत जरूरी है। कोरोनावायरस महामारी से उपजे हालात में विकास का पहिया थम सा गया है ,चल रहा है तो सिर्फ पेट की चक्की जिसका इंतजाम हमारे किसान बेहतर ढंग से कर रहे हैं।
अचानक से लिए गए लाॅकडाउन के फैसले से मन में पहली शंका उठी वो खाद्यान्न का था जो निरर्थक था। देश में ये शुकुन देने वाली खबर है कि कहीं भी राशन दुध सब्जी की किल्लत नही है अपवाद स्वरुप कहीं भूखे होने की खबरें आ भी रही है जो वास्तविक नही व्यवस्थागत है।
विपरीत परिस्थितियों में भी किसान अपना फर्ज बखूबी निभा रहे हैं।वो भी लाभ हानि का परवाह किये बगैर।
जरुरत तो इनके लिए भी ताली और थाली बजाने की है।
संकट प्राकृतिक हो या मानविक पहला और आसान शिकार किसान ही होता है ,भला वह कोरोना संकट से कैसे अछूता रह सकता है।फसलों की कटाई मिंजाई से लेकर मंडी में बेचना तक चुनौती बना हुआ है।
सब्जियां कौड़ी के भाव बिक रहा है लागत तो दूर मंडी लाने तक का खर्च निकल जाये, इस पर ही संदेह बना हुआ है,दुध निकालना मजबूरी बन गई है पशुओं का चारा पानी निकल आये, इतने पर संतोष करना पड़ रहा है। फिर भी डटे हुए हैं योद्धा बनकर ताकि देश भूँखा न रहे।
संयुक्त राष्ट्र (यूएन)ने पिछले दिनों खाद्य संकट पर दुनिया के हालात पर रिपोर्ट जारी की। इसमें कहा गया है कि इस साल दुनिया के 55 देशों में 13.5करोड़ लोग घोर भूखमरी की स्थिति में रह रहे हैं।कोरोना महामारी के कारण यह संख्या दोगुना बढ़कर 26.5करोड़ हो जायेगी। वहीं संयुक्त राष्ट्र की खाद्य संस्था ने कहा है कि आने वाले समय में खाद्यान्न का भयंकर संकट होगा और दुनिया की करीब 100करोड़ आबादी भुखमरी से प्रभावित हो सकती है।
भारत के पास अवसाद से बाहर आने और हौसला बढ़ाने के तीन कारण है।
पहला भारत में अमेरिका के मुकाबले कोरोना की घातक क्षमता भारत में कम है।
दूसरा लाॅकडाउन का सकारात्मक असर अब मरीजों की संख्या में दिखने लगा है।
और
तीसरा देश में सालभर का अनाज है।जो बड़ी राहत देगी।
किसान होने के कारण ये मेरे लिए संतोष का विषय है । संयुक्त राष्ट्र ने भारत के किसानों की महत्ता को स्वीकार किया है।अब बारी सरकार और समाज की है ,वह कृषि और किसान को किस कोने में बिठाता है?
(लेखक झबेन्द्र भूषण वैष्णव छत्तीसगढ़ प्रगतिशील किसान संगठन के महासचिव हैं।यह विचार निजी है)