ट्रेड यूनियनो के संयुक्त मंच का छत्तीसगढ़ में भी अभूतपूर्व हड़ताल
रायपुर(ख़बर वारियर)- मोदी सरकार की नीतियों का तीव्र विरोध करते हुए 26 नवम्बर को मजदूर, कर्मचारियों के देशव्यापी हड़ताल को छत्तीसगढ़ में भी श्रमिक संगठनों ने अभूतपूर्व रूप से सफल बनाया। इंटक के प्रदेश अध्यक्ष संजय सिंह, एटक के राज्य महासचिव हरनाथ सिंह, सीटू के राज्य अध्यक्ष बी सान्याल, एच एम एस के कार्य. अध्यक्ष एच एस मिश्रा, एक्टू के महासचिव बृजेंद्र तिवारी, सी जेड आई ई ए के महासचिव धर्मराज महापात्र, छत्तीसगढ़ मुक्ति मोर्चा के अध्यक्ष जनक लाल ठाकुर, बैंक कर्मी नेता शिरीष नलगोंडवार, डी के सरकार, छ ग तृतीय वर्ग कर्म संघ के अध्यक्ष राकेश साहू, केंद्रीय कर्मचारी समन्वय समिति के दिनेश पटेल, आशुतोष सिंह, प्रशांत पाण्डेय, सतीश कुमार, मानिक राम पुराम, राजेंद्र सिंह, बीमा कर्मी नेता अलेक्जेंडर तिर्की, सुरेन्द्र शर्मा, बी एस एन एल के आर एस भट्ट, एस टी यू सी के सचिव एस सी भट्टाचार्य ने संयुक्त प्रेस वक्तव्य में मोदी सरकार की मजदूर व किसान विरोधी नीतियों के खिलाफ 26 नवंबर को देशव्यापी हड़ताल को प्रदेश के छात्रों, मजदूरों, युवाओं, महिलाओं,किसानों से अभूतपूर्व ढंग से सफल बनाने के लिए बधाई दी ।
उल्लेखनीय है कि प्रदेश के कर्मचारी अधिकारी फेडरेशन , मंत्रालयीन कर्मचारियों, छत्तीसगढ़ मुक्ति मोर्चा ने भी इस हड़ताल का समर्थन किया था। बैंक, बीमा, डाक, इनकम टैक्स, कोयला, बालको, राजहरा, हिरी, खदान, बैलाडीला, ऊर्जा, भिलाई में ठेका मजदूर, आंगनवाड़ी , मध्यान्ह भोजन कर्मी, कोटवार, पंचायत कर्मी, राज्य सरकार कर्मी, एम्स कर्मचारी, बीस एन एल कर्मी मेडिकल रिप्रेजेंटेटिव व हर हिस्से के श्रमिक हस्तल पर रहे ।
व्यापार करने में आसानी
किसान संगठन ने भी इसका समर्थन किया है और वे 26 को संसद घेराव के साथ प्रदर्शन किए। साज भी पूरे प्रदेश में।सभी स्थानों पर संयुक्त सभाएं व प्रदर्शन किए। रायपुर में संयुक्त मंच के साथियों ने सपरे स्कूल मैदान में संयुक्त सभाएं की । जिसे बी सान्याल, संजय सिंह, धर्मराज महापात्र, आर डी सी पी राव, नरोत्तम शर्मा, राकेश साहू, प्रेमकिशीर बाघ, प्रदीप मिश्रा, विभाष पैतुंडी, सी एल साहू, तुलसी साहू, पद्मा साहू, आदि ने संबोधित किया । वकताओ ने हड़ताल की सफलता से बौखलाकर हरियाणा, दिल्ली, उत्तर प्रदेश में किसानो को दिल्ली पहुंचने से रोकने विगत 3 दिनों से किसान नेताओं की बड़े पैमाने पर गिरफ्तारी की तीव्र आलोचना करते हुए कहा कि
ऐसे दमन से सरकार की देश बेचो मुहिम के विरुद्ध मजदूर, किसान आंदोलन को रोका नहीं जा सकता है ।
श्रमिक संगठनों के नेताओं ने मोदी के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार एवं भाजपा शासित राज्य सरकारों द्वारा देश के मजदूरों, किसानों और आम लोगों के बुनियादी लोकतांत्रिक और संवैधानिक अधिकारों पर किए जा रहे हमलों की कड़ी की और कहा कि भाजपा सरकार ने, ‘सभी को साथ लेकर चलने का’ , जो मुखौटा अपने पहले कार्यकाल (2014-19) में पहना था, 2019 के बाद से अपने दूसरे कार्यकाल में उतार कर फेंक दिया है। एक ऐसे वक़्त में जबकि मांग की कमी के चलते अर्थव्यवस्था सभी पैमानों पर काफी सुस्त हैं, सरकार ने “व्यापार करने में आसानी” के नाम पर अपनी गलत नीतियों को जारी रखा, जिसके फलस्वरूप व्यापक दरिद्रता की स्थिति और गंभीर हुई और संकट और गहरा गया।
तीन कृषि बिलों को पारित किया
इस प्रक्रिया में, कॉरपोरेट करों को कम करने के अलावा, सरकार ने विपक्षी दलों की अनुपस्थिति में संसद में तीन श्रम-विरोधी संहिताओं को नितांत अलोकतांत्रिक तरीके से पारित कर लिया । इन श्रम संहिताओं की रचना यूनियनों का गठन मुश्किल बना कर और उनका हड़ताल का अधिकार छीन कर स्ट्रीट वेंडर, घरेलू कामगार, मध्याह्न भोजन कर्मचारी, बीड़ी श्रमिकों, निर्माण श्रमिकों, रिक्शा-चालकों और अन्य दैनिक वेतन भोगी असंगठित क्षेत्र के श्रमिकों के बड़े वर्ग को इन कानूनों के दायरे से बाहर करके, श्रमिकों पर दासता की स्थितियों को थोंपने के उद्देश्य से की गई है।
इसी तरह से सभी संसदीय और संवैधानिक प्रक्रियाओं का उल्लंघन करते हुए, बगैर कानूनी रूप से कृषि उपज के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य की गारंटी दिए, सरकार ने तीन कृषि बिलों को पारित किया है और आवश्यक वस्तु अधिनियम में प्रतिबंधात्मक परिवर्तन किया है।
इसके द्वारा सरकार ने कॉर्पोरेट और अनुबंध खेती, बड़े खाद्य प्रसंस्करण और विदेशी और घरेलू खुदरा एकाधिकार को बढ़ावा दिया है और देश की खाद्य सुरक्षा को भी खतरे में डाला है । इतना ही नहीं, बिजली (संशोधन) विधेयक, 2020 पर 12 मुख्यमंत्रियों के विरोध को अनदेखा करते हुए और संसद में प्रस्तुत कर बिल को विधिवत लागू किए बिना, बिजली वितरण नेटवर्क का निजीकरण शुरू कर दिया है और मौजूदा कर्मचारियों को नए मालिकों की दया पर छोड़ दिया है। इससे पहले, सरकार ने बड़े एनपीए खातों की वसूली हेतु कोई प्रयास किये बगैर ही सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों का विलय कर आम जमाकर्ताओं के धन को खतरे में डाला।
फ्रंटलाइन वॉरियर्स को सबसे ज्यादा खतरा
भारतीय रिज़र्व बैंक, जीवन बीमा निगम और सार्वजानिक क्षेत्र के विभिन्न उपक्रमों का उपयोग एटीएम के रूप में किया जा रहा है; रेलवे मार्ग, रेलवे स्टेशन, रेलवे उत्पादन इकाइयाँ, हवाई अड्डे, पोर्ट और डॉक्स, लाभकारी सरकारी विभाग , कोयला खदानें, नकदी समृद्ध सार्वजनिक उपक्रमों जैसे बीपीसीएल, 41 आयुध (Defense) कारखानों, बीएसएनएएल, एयर इंडिया, सड़क परिवहन जैसे सार्वजानिक क्षेत्र की इकाइयों के निजीकरण का उन्मादी खेल नीलामी और 100% एफडीआई के माध्यम से खेला जा रहा है। एक ऐसे समय में जब देश कोविड-19 महामारी से त्रस्त है, इन सभी विनाशकारी उपायों को तेज़ी से अमल में लाया जा रहा है।
यहां तक कि “फ्रंटलाइन वॉरियर्स” – डॉक्टर, नर्स, पैरामेडिकल स्टाफ, स्वच्छता कार्यकर्ता, आंगनवाड़ी, आशा कार्यकर्ता, जिनको अपना स्वयं का जीवन जोखिम में डाल कर सर्वेक्षण करने के लिए मजबूर किया जा रहा है , उनको वादा किया गया मौद्रिक और बीमा लाभ न देकर उनके साथ घिनौना व्यवहार किया गया है, जबकि चिन्हित भ्रष्ट पूंजीपति महामारी में भी रोजाना करोड़ों रुपये के बाजार पूंजीकरण के लिए सुर्खियों में हैं!। सरकारी कर्मचारी को समय से पहले रिटायर करने की धमकी दी जा रही है ।
श्रमिक संगठनों ने किसान विरोधी कृषि कानूनों को वापस लेने की मांग पर संघर्षरत किसानों के आंदोलन के साथ पूरी एकजुटता व्यक्त करते हुए
1. सभी गैर आयकर दाता परिवारों के लिए प्रति माह 7500 रुपये का नकद हस्तांतरण;
2. सभी जरूरतमंदों को प्रति व्यक्ति प्रति माह 10 किलो मुफ्त राशन;
3. ग्रामीण क्षेत्रों में एक साल में 200 दिनों का काम, बढ़ी हुई मज़दूरी पर उपलब्ध कराने के लिए मनरेगा का विस्तार; शहरी क्षेत्रों में रोजगार गारंटी का विस्तार;
4. सभी किसान विरोधी कानूनों और मजदूर विरोधी श्रम संहिता को वापस लेना;
5. वित्तीय क्षेत्र सहित सार्वजनिक क्षेत्र के निजीकरण को रोकें और रेलवे, आयुध कारखानों , बंदरगाह आदि जैसे सरकारी विनिर्माण उपक्रम और सेवा संस्थाओं का निगमीकरण बंद करें;
6. सरकार और पीएसयू कर्मचारियों की समय से पहले सेवानिवृत्ति पर ड्रैकियन सर्कुलर को वापस लेना;
7. सभी को पेंशन प्रदान करें, एनपीएस को ख़त्म करें और पहले की पेंशन को बहाल करें, ईपीएस -95 में सुधार की मांग की ।