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“कही-सुनी”:- वरिष्ठ पत्रकार रवि भोई की कलम से

( 13 DEC)

“कही-सुनी”

रवि भोई📝


छत्तीसगढ़ की राजनीतिक प्याली में तूफ़ान

स्वास्थ्य मंत्री टीएस सिंहदेव का बयान और फिर भूपेश बघेल के हाईकमान के निर्देश पर तत्काल इस्तीफे की बात ने राज्य की राजनीति में ज्वार-भाटा पैदा कर दिया। छत्तीसगढ़ की राजनीतिक प्याली में उठे तूफ़ान के बीच भूपेश बघेल की सरकार 17 दिसंबर को दो साल पूरे होने का जश्न तो मनाएगी ही। ढाई साल के फार्मूले की सच्चाई का खुलासा साफ़ तौर पर कोई नहीं करता , लेकिन घटनाक्रमों और बयानों से लगता है दोनों नेताओं के बीच तलवारें खींच गई है। साफ है कि युद्ध एकतरफा नहीं होता। पर ढाई साल के फार्मूले में कई पेंच भी दिखाई पड़ते हैं। यह फार्मूला हाईकमान के लिए गले का फांस बन जायेगा।

छतीसगढ़ फार्मूले पर अमल हुआ तो राजस्थान में अशोक गहलोत और सचिन पायलट की लड़ाई तेज हो जाएगी। फिर भूपेश बघेल के खिलाफ फिलहाल कोई मुद्दा नजर नहीं आ रहा है और न ही विद्रोह का वातावरण दिख रहा है। भूपेश ने दो साल में अपने पैर मजबूत कर लिए हैं , ऐसे में सिंहदेव के लिए उन्हें उखाड़ पाना आसान नहीं है , वहीँ राज्य में आदिवासी और अन्य पिछड़ा वर्ग के नेता सिंहदेव को क्या सह पाएंगे, यह भी बड़ा सवाल है। मुख्यमंत्री की दौड़ में ताम्रध्वज साहू काफी पीछे चले गए हैं , लेकिन डॉ. चरणदास महंत की मजबूती बनी हुई है, वहीँ अब मोहन मरकाम और अमरजीत भगत का नाम भी सामने आने लगा है।

मोहन मरकाम का झटका

मुख्यमंत्री निवास में पिछले दिनों निगम-मंडलों में नियुक्ति को अंतिम रूप देने के लिए हुई बैठक से प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष मोहन मरकाम के रूठकर चले जाने की घटना राजनीतिक गलियारों में चर्चा का विषय बना हुआ है। कहते हैं मुख्यमंत्री के एक सलाहकार निगम-मंडल में नियुक्ति की सूची पर मोहन मरकाम से हस्ताक्षर करने को कहा, लेकिन सूची में अपने पांच लोगों के नाम न देखकर वे सन्न रह गए। चर्चा है कि उनकी सिफारिश को तवज्जो न देने से खफा मरकाम बैठक छोड़कर चले गए। अब तक मोहन मरकाम को “माटी का माधो” कहा जा रहा था , लेकिन इस घटना से संकेत दे दिया कि वे रबर स्टंप नहीं हैं।

कहा तो यह भी जा रहा है कि मरकाम के साथ कई विधायक आ गए हैं। कांग्रेस में अभी 30 आदिवासी विधायक हैं। इस घटना के बाद मुख्यमंत्री भूपेश बघेल को साफ़ करना पड़ा कि निगम-मंडलों में नियुक्ति मुख्यमंत्री का विशेषाधिकार है , फिर भी संगठन और पार्टी के नेताओं से रायशुमारी की जा रही है।

तंबोली को तीन चार्ज

वैसे किसी सरकारी संस्था में कमिश्नर या फिर सीईओ याने मुख्य कार्यपालन अधिकारी की सबसे अधिक भूमिका होती है। इसके बाद भी भूपेश सरकार ने 2009 बैच के आईएएस डॉ. तंबोली अय्याज फकीरभाई को छत्तीसगढ़ हाउसिंग बोर्ड के आयुक्त के साथ -साथ नवा रायपुर विकास प्राधिकरण और रायपुर विकास प्राधिकरण का मुख्य कार्यपालन अधिकारी बना दिया है। कहते हैं सरकार ऐसा तब करती है, जब राज्य में अफसरों की कमी हो या फिर अफसर भारी काबिल हो।

हाउसिंग बोर्ड, एनआरडीए और आरडीए करीब-करीब मिलती जुलती संस्थाएं हैं। तीनों का काम विकास और मकान बनाना है, लेकिन हाउसिंग बोर्ड का काम राज्यभर में फैला है, तो एनआरडीए और आरडीए राजधानी क्षेत्र और रायपुर तक सीमित हैं।

कुछ साल पहले तक मुनाफे से उछलता हाउसिंग बोर्ड इन दिनों आर्थिक संकट से जूझ रहा है तो आरडीए ने चादर से ज्यादा पांव फैला दिया और अब समेटना, उसके लिए टेढ़ी खीर बन गया है, वहीँ नया रायपुर को चकाचक करना बड़ी चुनौती है।

पेशे से चिकित्सक डॉ. तंबोली तीनों संस्थाओं के साथ किस तरह न्याय करते उनका नैया पार करा पाते हैं यह तो समय बताएगा। पर कहते हैं कि डॉ. तंबोली को तीन संस्थाओं का प्रमुख बनाये जाने से हाउसिंग बोर्ड के अध्यक्ष कुलदीप जुनेजा खुश नहीं हैं। अब देखते हैं आगे क्या होता है।

क्या द्विवेदी दंपति दिल्ली का रुख करेंगे ?

1995 बैच के आईएएस डॉ. मनिन्दर कौर द्विवेदी और गौरव द्विवेदी भूपेश सरकार के शुरूआती दिनों में पोस्टिंग को लेकर बड़ी चर्चा में थे। गौरव द्विवेदी मुख्यमंत्री के प्रमुख सचिव थे और उनकी पत्नी डॉ. मनिन्दर कौर को कृषि विभाग में पावरफुल बनाने के साथ दिल्ली का भी चार्ज दिया गया था।

केडीपी राव के रिटायरमेंट के बाद डॉ. मनिन्दर को एपीसी ( कृषि उत्पादन आयुक्त) बनाया गया। लेकिन द्विवेदी दंपति भूपेश सरकार में ज्यादा दिन तक प्राइम पोस्टिंग पर रह नहीं पाए। गौरव द्विवेदी को मुख्यमंत्री के प्रमुख सचिव की जगह पंचायत और ग्रामीण विकास विभाग के प्रमुख सचिव बना दिए गए। अब उन्हें वाणिज्यिक कर का प्रभार दिया गया है। डॉ. मनिन्दर को एपीसी से हटाकर कुछ दिन सरकार ने खाली रखा, फिर वाणिज्यिक कर और ग्रामोद्योग दिया गया। लगा यह लंबा चलेगा, लेकिन हाल ही में हुए प्रशासनिक बदलाव के बाद उनके पास ग्रामोद्योग के साथ विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग ही रह गया है।

चर्चा है कि दो साल में दोनों अफसरों को जिस तरह कमतर आँका गया , उससे साफ़ है कि भूपेश सरकार के साथ उनकी पटरी नहीं बैठ रही है। डॉ. मनिन्दर कौर और गौरव द्विवेदी को केंद्र सरकार से प्रतिनियुक्ति से लौटे दो साल हो गए हैं। कहते हैं गृह राज्य में दो साल की सेवा के बाद आईएएस अधिकारी फिर प्रतिनियुक्ति पर जा सकते हैं। कहा जा रहा है कि छत्तीसगढ़ में लूपलाइन में रहने की जगह वे एक बार फिर दिल्ली की तरफ रुख कर सकते हैं।

बीरबल की खिचड़ी बन गई निगम-मंडल की सूची

भूपेश सरकार में निगम-मंडलों में नियुक्ति की नई सूची लगातार टलती जा रही है। ऐसा लग रहा है सूची नहीं हो गई, बीरबल की खिचड़ी हो गई है। पहले कहा गया मरवाही उपचुनाव के बाद बचे निगमों में नियुक्ति होगी। मरवाही उपचुनाव में कांग्रेस की बड़ी जीत के बाद नेताओं और कार्यकर्ताओं की बांछे खिली , पर चेहरे की उदासी दूर नहीं हुई है।

कहते हैं निगम-मंडलों में बचे पदों को बांटने में नेताओं के बीच आम-सहमति नहीं बन पा रही है। वहीँ नेताओं को जूतमपैजार का भय भी सत्ता रहा है। चर्चा यह भी है कि संघर्षशील नेताओं और कार्यकर्ताओं की जगह नाराज विधायकों को एडजेस्ट करने के फार्मूले के चलते सूची लटक रही है।

पट्टे की जमीन पर कुंडली मारे बैठे राजनेता

एक रिटायर्ड आईएएस के परिवार के बाद अब संयुक्त मध्यप्रदेश की राजनीति में तूती बोलने वाले एक नेता के परिवार का सरकारी जमीनों पर काबिज होना चर्चा का विषय बन गया है। कहते हैं कांग्रेस से जुड़े इस नेता के परिवार के पास सरकारी जमीनों के 28 पट्टे हैं। पट्टे की जमीन पर शॉपिंग काम्प्लेक्स, होटल और बड़ा आशियाना भी तना है। चर्चा है कि राजनेता की जमीन रायपुर के कई चौक -चौराहों पर है। एक रिटायर्ड आईएएस के परिवार को पट्टे पर मिली जमीन को फ्रीहोल्ड करने पर आपत्ति लगाने के बाद लोग राजनीतिक परिवार के पट्टे की जमीनों का कागजात खंगालने लगे हैं। इस परिवार से जुड़े एक व्यक्ति अभी विधायक हैं वही उत्तराधिकारी भी हैं। देखना यह है कि राजनीतिक परिवार के पट्टे की जमीनों को लेकर क्या खेल होता है।

संसदीय सचिव खफा

छत्तीसगढ़ में संसदीय सचिवों को मंत्रियों जैसी सुविधाएँ नहीं है। न लालबत्ती लगाकर घूम सकते और न ही फाइलों पर आदेश कर सकते। कैबिनेट में भी नहीं जा सकते, पर इनके मत्थे आ जाता है विधानसभा में सवालों का जवाब देना।

भूपेश सरकार में 15 संसदीय सचिव हैं, विधानसभा में सवालों का जवाब देने का अधिकार और सरकार का हिस्सा होने के कारण ये विधानसभा में अपने विधानसभा क्षेत्र से संबंधित सवाल न उठा सकते और न ही लगा सकते हैं। कहते हैं विधानसभा में सवाल लगाने और उठाने का अधिकार छीनने से संसदीय सचिव भारी खफा हैं। छत्तीसगढ़ में 21 दिसंबर से विधानसभा का शीतकालीन सत्र है।

देवजीभाई का पत्ता काटने बैस के रिश्तेदार को पद

कहते हैं पूर्व विधायक देवजीभाई पटेल रायपुर ग्रामीण का जिला अध्यक्ष बनना चाहते थे, लेकिन उनका पता साफ़ करने के लिए भाजपा नेता और त्रिपुरा के राज्यपाल रमेश बैस के भांजे अनिमेष कश्यप को रायपुर ग्रामीण का कमान सौंप दिया गया। माना जा रहा है कि ओंकार बैस को रायपुर शहर जिला अध्यक्ष न बनाने की भरपाई ग्रामीण में की गई है। ओंकार भी रमेश बैस के रिश्तेदार हैं।

रायपुर शहर का अध्यक्ष पूर्व विधायक श्रीचंद सुंदरानी को बनाया गया है। इसको लेकर पार्टी का एक खेमा अब भी नाराज बताया जा रहा है। वहीँ दो सांसदों में मतभेद के कारण दुर्ग जिले में संगठन के पदाधिकारी तय नहीं हो पा रहे हैं। प्रदेश संगठन में तीन पूर्व मंत्रियों को प्रवक्ता बनाने को  लेकर भी स्थिति अनुकूल नहीं है। कहा जा रहा है प्रदेश संगठन में बची नियुक्तियों को लेकर भी आम राय नहीं बन पा रही है।

(-लेखक, पत्रिका समवेत सृजन के प्रबंध संपादक और स्वतंत्र पत्रकार हैं।)

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