छत्तीसगढ़विचार

ढोलकल में 3000 फ़ीट की ऊंचाई पर दंतेश का वाड़ा

@ योगी बस्तरिया ✍️


छत्तीसगढ़ देवी देवताओं भूमि है, इससे मुंह मोड़ा नहीं जा सकता… इतिहास के पन्ने और पुरात्व के साथ गांव के बुजुर्गों से पता चलता है कि दक्षिण बस्तर में जहां माई दंतेश्वरी बस्तर की कुल देवी होने का गौरव रखती है, तो ढोलकल पहाड़ी पर स्थापित गणपति बप्पा दंतेवाड़ा के रक्षक बने हैं… दंतेवाड़ा की पहाड़ी अपने अतीत के गर्भ में ना जाने कितने इतिहास को दबाया हुआ है।

कहते हैं छुपे रहस्यों को खोजने के लिए केवल एक जन्म पर्याप्त नहीं..यह लगभग हजारों वर्ष पुराना रहस्यमय भगवान गणेश का तीर्थस्थल जो एक घने जंगल के बीच में दंतेवाड़ा पत्रकार बप्पी रॉय द्वारा 2012 में खोजे जाने से पहले सदियों तक छिपा रहा।

दंतेवाड़ा से 30 किलो मीटर दूर ढोलकल की पहाड़ियों पर 3000 फ़ीट की ऊंचाई पर सैकड़ों साल पुरानी, नागवंशीय राजाओं द्वारा स्थापित एक बहुत बड़ी प्रतिमा गणेश की है…

यहां पर पहुंचना आज भी बहुत दुर्गम व जोखिम है, मन में एक ही सवाल उठता है यह गणेश प्रतिमा यहां कैसे स्थापित की गई? पुरात्वविदों का एक अनुमान यह है की दंतेवाड़ा क्षेत्र के रक्षक के रूप नागवंशियों ने गणेश जी की यहां स्थापना की थी।

भव्य है गणेश प्रतिमा

ढोलकल पहाड़ी पर स्थापित 6 फीट ऊंची 21/2 फीट चौड़ी ग्रेनाइट पत्थर से निर्मित यह प्रतिमा वास्तुकला की दृष्टि से कलात्मक है।गणपति की इस प्रतिमा में ऊपरी दांए हाथ में फरसा, बांए हाथ में टूटा हुआ एक दंत, नीचे दांए हाथ में अभय मुद्रा में अक्षमाला धारण किए हुए तथा नीचे बांए हाथ में मोदक धारण किए हुए आयुध के रूप में विराजित है।पुरातत्वविदों के मुताबिक इस प्रकार की प्रतिमा बस्तर क्षेत्र में कहीं नहीं मिलती है।

गणेश और परशुराम में यही हुआ हुआ था युद्ध

दंतेश का क्षेत्र (वाड़ा) को दंतेवाड़ा कहा जाता है… इस क्षेत्र में एक कैलाश गुफा भी है। इस क्षेत्र से सम्बंधित एक किंवदंती यह चली आ रही है कि यह वही कैलाश क्षेत्र है जहां पर गणेश एवं परशुराम के मध्य युद्ध हुआ था। यही कारण है कि दंतेवाड़ा से ढोलकल पहुंचने के मार्ग में एक ग्राम परसपाल मिलता है, जो परशुराम के नाम से जाना जाता है। इसके आगे ग्राम कोतवाल पारा आता है। कोतवाल अर्थात् रक्षक के रूप में गणेश जी का क्षेत्र होने की जानकारी मिलती है।

दंतेवाड़ा क्षेत्र की रक्षक है यह गणेश प्रतिमा

पुरात्व जानकारों और गांव के बुजुर्गों मुताबिक इस विशाल प्रतिमा को दंतेवाड़ा क्षेत्र रक्षक के रूप में पहाड़ी के चोटी पर स्थापित किया गया होगा, गणेश जी के आयुध के रूप में फरसा इसकी पुष्टि करता है। यहीं कारण है कि उन्हें नागवंशी शासकों ने इतनी ऊंची पहाड़ी पर स्थापित किया था। नागवंशी शासकों ने इस मूर्ति के निर्माण करते समय एक चिन्ह अवश्य मूर्ति पर अंकित कर दिया है. वह है गणेश जी के उदर पर नाग का अंकन। गणेश जी अपना संतुलन बनाए रखे, इसीलिए शिल्पकार ने जनेऊ में संकल का उपयोग किया है।कला की दृष्टि से 10-11 शताब्दी की (नागवंशी) प्रतिमा कही जा सकती है…

28 जनवरी 2017 को दुखद खबर आई की इस प्राचीन विरासत को नक्सलियों ने खाई में गिराकर नष्ट कर दिया है… इसका कारण लोगों के बीच बढ़ती लोकप्रियता बताया जा रहा है… जिसके कारण यहां पर आम लोगों की आवाजाही बढ़ गई थी। यही बात नक्सलियों को पसंद नहीं आई…_

(लेखक दैनिक समाचार पत्र में ग्राफिक्स डिज़ाइनर हैं)

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