विचार

छत्तीसगढ़ का महान गायक केदार यादव, यादों मे..पुण्यतिथि 16 जनवरी पर विशेष.

होमेन्द्र देशमुख✍

रायपुर(khabarwarrior)छत्तीसगढ़ के गीतों में अंचल के साथ साथ देश और राष्टीयता के भावों और अपनी भूमिका को यहां के गीतकारों ने किस तरह पिरोया है , उसका एक उदाहरण है यह गीत । सोनहा बिहान और बाद में नवा बिहान के इस आह्वान गीत को आपने केदार यादव के सुर में जरूर सुना होगा –

उठ झटकुन बेरा झन कर होगे गा बिहान
चल भाई रे हम खेत म अपन लुए ल जाबो धान

दिन-भर कमा के सांझे घर आबो गा
सब अपन मेहनत के फल ल पाबो गा

तभे तो कहाबो हमन,
हो हो हो हो हो हो हो हो

तभे तो कहाबो हमन भारत के किसान
चल भाई रे …

भुइयां के कमइया,उपासक, आराधक,’किसान’ के इस गीत के गायक स्वर्गीय केदार यादव का एक छोटा सा किस्सा सुनाकर मैं अपने आप को उनके सानिध्य का घमंड या फक्र को भी बताना चाहूंगा ।

1990 के दशक की बात होगी
मैं स्वर-संगम रेडियो वाले बहादुर जी से मिलने अपने पिताजी के साथ उनके दुकान गया जो तब दुर्ग के कचहरी रोड के कच्चे और टिन वाले दुकान पर था । रौबदार आवाज और अच्छी सेहत, थोड़े नाटे कद के बहादुर जी की मेरे पिताजी से उठक बैठक वाली पहचान थी । क्योंकि मेरे पिताजी मंचीय उद्घोषक भी थे । वे दोनो आपस मे बातें करने में मशगूल हो गए । पास मे गाने-बजाने की आवाज मेरे नन्हे कानों में पड़ी तो मैं दो घर छोड़ कर बने एक कच्चे कवेलू वाले मकान में उसी आवाज की ओर चुम्बक की तरह खींचते अंदर घुस गया । वहां बिना माइक के जो गाना सुना वह एक प्रसिद्ध गाने रिहर्सल था …

गांव में तो पुछारी नइये
हीरा के चिन्हारी नइये
भांवर के किंजियारी नइये
सारा नइये सारी नइये ।

इसे गायक ने दो बार हार्मोनियम और तबला के संगत के साथ दोहराया और घर के अंदरूनी दरवाजे के अंदर से किसी के आने के इंतज़ार में तीसरी बार भी आवाज जरा ऊंची कर फिर गाया ।

स्टील के प्लेट में रखे एक टूटे हैंडल सहित तीन छोटे सफेद चकरी चाय का छलकता चीनी मिट्टी के कप, जिसमे हरे और लाल रंग के गोल घेरे खिंचे थे । एक नीले बार्डर वाली भूरी मटमैली सी साड़ी पहने सांवली सी महिला लेकर इसी कमरे में लपकते आते हुए चिल्लाई..

ए… भांटो...!

गायक ने फिर अपनी रफ्तार पकड़ ली –

अरे…भांटो कहैया भैया कोनो नइये गा
हमरो पुछइया भैया कोनो नइये गा ।

पता चला तो आश्चर्य और खुशी का ठिकाना नही रहा !

ये उस जमाने के प्रसिद्ध गायक केदार यादव और उनकी पत्नी साधना यादव थे ।
उस गाने की तरह, सच मे इनकी पूछ परख मंच तक ही थी , क्योंकि बड़े मंचीय घरानों के अलावा ज्यादातर कलाकारों के पास आमदनी के दूसरे और पर्याप्त साधन नही होते थे । गायक केदार यादव का जीर्ण-शीर्ण घर , मारवाड़ियों के अट्टालिकाओं की कतार में बदनुमा दाग सा भले ही दिखता हो , पर इस कोयले की खान में मेरा यह हीरा गायक केदार यादव रहता था ।
कुछ कमजोर काया के कारण अपने कांपते हांथों से पकड़े चाय के कप जल्दी खाली कर यह युवा गायक संगतकार तबले वाले व अपनी पत्नी साधना यादव के साथ मिलकर फिर एक नए गीत के रिहर्सल में जुट गए ।

पास ही बैठे ,स्वर संगम के इलेक्ट्रिशियन शर्मा जी के नाम से प्रसिद्ध शिव शर्मा के साथ एक दो गाने का रिहर्सल देख और सुनकर मै भी वापस स्वर संगम लौट आया । शर्मा जी अपने खाली समय में वहां जाकर पालथी लगा कर बीड़ी सुलगा लिया करते थे । वो मुझे अच्छी तरह से पहचानते भी थे ।

मोर झुल तरी गेंदा जैसे प्रेमगीत के अलावा धर ले कुदारी गा किसान,मोर चलव रे बइला नांगर और ये विधाता गा मोर कइसे बचाबो परान जैसे धरती और खेती किसानी के गीत गाने वाले केदार यादव के प्रसिद्द गीत-

मोर भाखा संग दया मया के सुघ्घ‍र हवय मिलाप रे.. अइसन छत्तीसगढ़िया भाखा ल कोनो संग झन नाप रे’

इस गाने ने तो जैसे बिन बोले ही किसी सेे भी अतुलनीय तुलना कर और स्वतः जीत और गर्व का एहसास का ऐलान कर अपने भाखा के लिए लोगों को आंदोलित कर देता था ।

तब मैं रेडियो के गानों को गायक का संदेश या आह्वान समझा करता था । गायक को  गूढ़ विषयों का ज्ञाता और बड़ा विद्वान भी समझता था ,पर यह नही जानता था कि गीत कोई और लिखता है और उसे गाता कोई और है । अभी मैं अपने बचपन और लड़कपन के बीच के सफर में ही था पर भावुक औऱ संवेदी स्वभाव का होने के कारण कुछ बातें समझते देर नही लगी ।
उस दिन केदार यादव के घर से निकल कर मेरा बालमन यही सोचने लगा ,समाज को सुरीला सन्देश देने वाला आदमी ‘मेरा हीरो’ ऐसे दीन-हीन कैसे..!

इस घटना से पहले और बाद में बहुत सारे मूर्धन्य गायकों गीतकारों संगीतकारों को मुझे सुनने का मौका मिला । मैं छत्तीसगढ़ी संस्कृति में गीतों से श्रृंगार करने और लोगों को अस्मिता परम्परा आंदोलनों का एहसास कराने वाले कला मनीषियों के उस अथाह सागर के रत्नों में से आज एक ही रत्न की चर्चा कर पाया । मौके और भी आएंगे , तब बारी औरों की भी आएंगी ।
16 जनवरी को केदार यादव की पुण्यतिथि है । प्रसिद्ध कवि-गीतकार मुकुंद कौशल का यह जिनगी- गीत उनको सच्ची श्रद्धांजलि होगी ।

जि…नगी के रद्दा अड़बड़ लमहा
दु ठिन हमरे चरण…
चल पुरवइया सनन सनन
चल पुरवइया सनन सनन..

आज बस इतना ही..!

होमेन्द्र देशमुख
9425016515
(लेखक एबीपी न्यूज़ भोपाल में वीडियो जर्नलिस्ट हैं,)

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