विचार

कोरोना मरीजों के इलाज के दौरान संक्रमित डॉक्टरों की मृतु के बाद भी अपमानजनक व्यवहार पीड़ादायक व निंदनीय

डॉ.दिनेश मिश्र,🖍️🖍️

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कोरोना के मरीजों का इलाज करते हुए संक्रमित डॉक्टरों की मृत्यु के बाद भी अपमानजनक व्यवहार पीड़ादायक व निंदनीय है।

पिछले सप्ताह कुछ डॉक्टरों के साथ कुछ ऐसी घटनाएं हुई  है ,जिन्हें शेयर करते हुए मन में असीम वेदना है।

पिछले सप्ताह देश के तीन अलग-अलग स्थानों में कोरोना से लड़ रहे डॉक्टरों की मृत्यु होने का समाचार मिला, जो कोरोना पॉजिटिव मरीजों का इलाज करते करते स्वयं, संक्रमित हो गए और अंततः उन्हें अपनी जान से हाथ धोना पड़ा।

खैर,यह तो इस पेशे की एक चुनौती ही है, कि एक बीमार और असहाय व्यक्ति की सेवा करते करते ,उसकी देखभाल करते करते आप कब वायरस या बैक्टीरिया की चपेट में आ जाते हैं, जो न केवल चिकित्सकों कोसंक्रमित कर सकता है,बल्कि उनकी जान भी ले लेता है।

पर आज जिन घटनाओं को बताते हुए आज मेरा मन बहुत ही विचलित है,उनमें से एक है चेन्नई के डॉक्टर हरकुलिस सायमन के साथ हुई घटना, जो कोरोना से संक्रमित मरीजों का इलाज करते करते न केवल खुद संक्रमित हो गए ,बल्कि उनकी मृत्यु हो गई , तथा जब उनके पार्थिव शरीर को एंबुलेंस में अंतिम संस्कार के लिए ले जाया जा रहा था, तब कुछ लोगों ने एंबुलेंस पर पत्थरबाजी की, लाठियों से हमला किया उनमें से कुछ पत्थर डॉक्टर सायमन के शरीर पर भी पड़े एम्बुलेंस में तोड़ फोड़ हुई, ड्राईवर भी घायल हुए उनके साथी डॉक्टर, और परिजन भी चोट नहीं बच सके।

कारण यह था, कि वहां पर भी एक अफवाह फैलाई गई थी, कि यदि किसी संक्रमित व्यक्ति का वहाँ अंतिम संस्कार किया जाता है तो संक्रमण ,आस पास के सभी व्यक्तियों में फैल जाएगा और श्मशान घाट से डॉ सायमन के शरीर को वापस लाना पड़ा, और अंततः तीसरे कब्रिस्तान में रात में पुलिस के सहयोग से उनका अंतिम संस्कार सम्भव हो पाया।

ऐसा ही एक वाकया नेल्लोर में हुआ जहां भी एक चिकित्सक के पार्थिव शरीर का अंतिम संस्कार करने में इसी अफवाह के कारण अड़चनें पैदा की गयीं।

पिछले सप्ताह मेघालय में भी ऐसी घटना घटी थी, जहां पर डॉ.जॉन रेलथियोंग नाम के वरिष्ठ डॉक्टर को कोरोना संक्रमण से मृत्यु होने के बाद होने के बाद उसके अंतिम संस्कार में बाधा उत्पन्न की गई ,बाद में प्रशासन के सहयोग से दूसरे दिन 36 घण्टे बाद उनका अंतिम संस्कार संभव हो पाया जो दुख में डूबे उन परिवारों के लिये अत्यंत हतप्रभ और पीड़ादायक था।उन डॉक्टरों के शव और उनके अंतिम संस्कार के समय की घटनाएं बेहद चिंतनीय हैं।

एक सवाल जो बार बार हम सबके मन में उठ रहा है, क्या जिंदगी भर पीड़ित मानवता का उपचार करने वालों के शव इस अपमान के पात्र थे,क्या उनके अंतिम संस्कार में की गयी रुकावटें तोड़फोड़ जैसी घटना किसी भी सभ्यता और परम्परा का हिस्सा हो सकती है।

हमारे यहाँ तो दुश्मनों को भी मरणोपरांत गरिमा मय तरीके से अंतिम बिदाई देने के अनगिनत उदाहरण मौजूद हैं फिर रोगियों की सेवा करते हुए संक्रमण के शिकार हुए डॉक्टरों के साथ यह व्यवहार क्यों?

राजस्थान,हरियाणा, मध्यप्रदेश के राजगढ़,इंदौर ,और मुरादाबाद में डॉक्टरों पर हमले की खबरें सामने आई हैं,जो चिंतनीय है।

 एक ओर जहाँ देश के चिकित्सक सीमित संसाधनों,में अपनी और अपने परिजनों की जान का खतरा उठा कर देश को महामारी से बचाने का कार्य कर रहे हैं,तब कुछ लोगों द्वारा ऐसा व्यवहार सभी चिकित्सकों का दिल तोड़ने वाला है।

 डॉक्टर, आप से यह नहीं कहते ,हमारा सम्मान करो, पर कम से कम ऐसा भी व्यवहार न करो कि डॉक्टरों का हौसला टूटने लगे।

डॉक्टरों को किसी संक्रमित मरीज,किसी गम्भीर रोगी को इलाज करने के पहले ,खुद की सुरक्षा के बारे में ,अपने परिवार की सुरक्षा के बारे में बार बार सोचना पड़े, मरीजों की सेवा के बाद भी उन्हें कृतज्ञता न मिले तो कोई बात नहीं, पर ,उसके बदले कृतघ्नता तो न मिले , किसी की शाबासी भले ना मिले,पर प्राणघातक हमले का सामना तो न करना पड़े।

दूसरी ओर सरकार से यही माँग है कि वह डॉक्टरों की सुरक्षा के लिए सक्षम कानून बनाये,, जो सिर्फ महामारी के समय ही काम न करे,बल्कि हमेशा उन के लिये सक्रिय ,व प्रभावी रहे।

(डॉ. दिनेश मिश्र वरिष्ठ नेत्र चिकित्सक हैं )

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