
रायपुर(khabarwarrior)देश के 41 कोल ब्लॉकों को कारपोरेटों को नीलाम करने तथा इसके व्यवसायिक खनन की अनुमति देने के मोदी सरकार के फैसले के खिलाफ कोयला श्रमिकों की 2-4 जुलाई को आहूत तीन दिवसीय राष्ट्रव्यापी हड़ताल का पूर्ण समर्थन करते हुए ट्रेड यूनियनों के संयुक्त मंच ने इसे वापस लेने की मांग की है । ट्रेड यूनियनों के संयुक्त मंच की संपन्न हुई बैठक ने प्रदेश के अन्य हिस्सों के मजदूरों से भी इस दिन एकजुटता कार्यवाही का आव्हान किया ।
इंटक के अध्यक्ष संजय सिंह, ऐटक के महासचिव हरनाथ सिंह, सीटू के अध्यक्ष बी सान्याल, महासचिव एम् के नंदी, एच एम एस के कार्यकारी अध्यक्ष एच एस मिश्रा, ऐकतू के महासचिव बृजेन्द्र तिवारी, सी जेड आई ई ए के महासचिव धर्मराज महापात्र, बी एस एं एल ई यू के महासचिव एच एन भट्ट बैंक कर्मी संगठन के शिरीष नलगुंडवार, डी के सरकार, तृतीय वर्ग कर्मचारी संघ के अध्यक्ष राकेश साहू, केंद्रीय कर्मचारियों के नेता दिनेश पटेल, राजेन्द्र सिंह, आशुतोष सिंह, मानिक्राम पुराम ने एक संयुक्त वक्तव्य में कहा कि मोदी सरकार एक ओर आत्मनिर्भरता का दावा करती है और दूसरी ओर देश की सम्पदा को लूटने निजी पूंजी के हवाले करने इसकी बिलिंलगा रहीं है ।
नेताओ ने कहा कि कोयला के व्यवसायिक खनन का प्रदेश के आदिवासी समुदायों पर पड़ने वाले सामाजिक और पर्यावरणीय दुष्प्रभाव, जैव विविधता और समृद्ध वन्य जीवों के विनाश, राज्यों के अधिकारों और संविधान की संघीय भावना के अतिक्रमण तथा अंतर्राष्ट्रीय पेरिस समझौते की भावना के उल्लंघन को देखते हुए इसके कानूनी पहलुओं पर झारखंड सरकार की तर्ज पर छत्तीसगढ़ सरकार को भी कोर्ट में चुनौती देने की मांग की है। इस संबध में मुख्यमत्री महोदय को एक पत्र भी भेजा जा रहा है ।
ट्रेड यूनियनों के संयुक्त मंच के नेताओ ने कहा कि छत्तीसगढ़ में कई कोल ब्लॉक पर्यावरणीय दृष्टि से संवेदनशील क्षेत्रों में है। हाथी संरक्षण और विभिन्न कारणों से इसे खनन के लिए ‘नो-गो एरिया’ घोषित किया गया है। वर्ष 2015 में ही हसदेव अरण्य की 20 ग्राम पंचायतों ने इस क्षेत्र में पेसा, वनाधिकार कानून व पांचवी अनुसूची के प्रावधानों का उपयोग करते हुए कोयला खनन के विरोध में प्रस्ताव पारित किए हैं। आदिवासी समुदायों को हमारे देश के संविधान से मिले इन अधिकारों के मद्देनजर केंद्र सरकार का यह निर्णय गैर-कानूनी है।
यूनियन के नेताओ ने कहा कि मोदी सरकार का यह कदम सुप्रीम कोर्ट द्वारा कोलगेट मामले में दिए गए निर्णय के भी खिलाफ है, जिसमें कहा गया है कि राष्ट्रीय संपदा का उपयोग सार्वजनिक हित में देश की जरूरतों को पूरा करने के लिए ही किया जा सकता है। उन्होंने कहा कि कोयला जैसी प्राकृतिक संपदा पर किसी सरकार का नहीं, देश की जनता और उसकी आगामी पीढ़ियों का अधिकार है, जिसे जैव विविधता और वन्य जीवन का विनाश कर के कारपोरेट मुनाफे के लिए खोदने-बेचने की इजाजत नहीं दी जा सकती है।
नेताओ ने कहा कि कोरोना की आड़ में अर्थव्यवस्था सुधारने के नाम पर जो कदम उठाए जा रहे हैं, वह ‘आत्मनिर्भर भारत’ नहीं, ‘अमेरिका पर निर्भर भारत’ का ही निर्माण करेगा। निर्यात के लिए कोयले के व्यावसायिक खनन की अनुमति देने से घरेलू बाजार में भी इसकी कीमत बढ़ेगी और सीमेंट, इस्पात, खाद व ऊर्जा उत्पादन भी प्रभावित होगा। उन्होंने कहा कि केंद्र सरकार के दस्तावेजों के ही अनुसार, देश की ऊर्जा जरूरतों को पूरा करने के लिए नए कोयला खदानों के खनन की जरूरत नहीं है, क्योंकि सरकार के नियंत्रण में वर्तमान में हो रहा कोयला उत्पादन भविष्य में ऊर्जा की जरूरत भी पूरा करने में सक्षम हैं।
मोदी सरकार की विनाशकारी जनविरोधी नीतियों के खिलाफ कोयला मजदूरों की प्रस्तावित देशव्यापी हड़ताल का समर्थन करते हुए संयुक्त मंच ने हर हिस्से के मजदूरों से इसका समर्थन की अपील की है ।