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कृषि विश्वविद्यालय करेगा किसानों को मधुमक्खी पालन में मदद

रायपुर (ख़बर वारियर)- इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय के कृषि वैज्ञानिक किसानों को मधुमक्खी पालन कराने के लिए मदद करेंगे। अंबिकापुर के राजमोहिनी देवी कृषि महाविद्यालय और अनुसंधान केंद्र में पिछले कई सालों से मधुमक्खी पालन पर काम किया जा रहा है। यहां सफलता मिलने के बाद कृषि विवि के वैज्ञानिकों ने अब दूसरे जिलों में भी किसानों को मदद करने का फैसला लिया है।

गौरतलब है कि अखिल भारतीय समन्वित मधुमक्खी पालन एवं परागण सहायक कीट अनुसंधान परियोजना के तहत इस वर्ष केंद्र की प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सरकार द्वारा मधुमक्खी पालन को बढ़ावा देने के लिए आत्मनिर्भर भारत के तहत 500 करोड़ रुपये देने का प्रावधान किया गया है। मधुमक्खी पालन से ग्रामीण क्षेत्रों में जहां रोजगार का साधन प्राप्त होता है। वहीं पर-परागण के माध्यम से फसलों से होने वालों की आय और गुणवत्ता में भी वृद्धि होती है।

इसके साथ ही मधुमक्खी पालन से शहद और मोम जैसे उत्पाद भी प्राप्त होते हैं। कृषि विवि के कुलपति डा. एसके पाटिल के मुताबिक, कृषि विवि मधुमक्खी पालन के लिए किसानों की मदद करने को पूरी तरह से तैयार है।

आर्थोपोडा संघ की हैं मधुमक्खियां

जंतु जगत में मधुमक्खी ‘आर्थोपोडा’ संघ का कीट है। विश्व में मधुमक्खी की मुख्य पांच प्रजातियां पाई जाती हैं। जिनमें चार प्रजातियां भारत में पाई जाती हैं। मधुमक्खी की इन प्रजातियों से हमारे यहां के लोग प्राचीन काल से परिचित रहे हैं। खैरा या भारतीय मौन इसे ग्रामीण क्षेत्रों में मधुमक्खी की प्रजातियां ‘सतकोचवा’ मधुमक्खी कहते हैं, क्योंकि ये दीवारों या पेड़ों के खोखलों में एक के बाद एक करीब सात समानांतर छत्ते बनाती हैं।

यह अन्य मधुमक्खियों की अपेक्षा कम आक्रामक होती हैं। इससे एक बार में एक-दो किलोग्राम शहद निकल सकता है। यह पेटियों में पाली जा सकती हैं। साल भर में इससे 10 से 15 किलोग्राम तक शहद प्राप्त हो सकती है।

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