विचार

“सर्द रात”–संघर्षरत किसानों को जीत की शुभकामनाओं के साथ सादर समर्पित एक किसान की कविता

संघर्षरत किसानों को जीत की शुभकामनाओं के साथ सादर समर्पित
🙏🙏🙏🙏🙏
“सर्द रात”

सत्ता इतना क्यूं क्रूर हुआ ,
अपनों से क्यूं इतना दूर हुआ ।
तेरी चौखट पर सर्द रात में, 
कोई सोने को मजबूर हुआ ?
सत्ता इतना क्यूं क्रूर हुआ?

जिस सिंहासन पर गर्जन है ,
वो पाया जिसके सर पर है।
अन्नदाता क्यूं सिसक रहा ,
क्यों पहुंचा तेरे दर पर है?
इठलाती है जिसके बल पर,
वो दिल्ली क्यूं उनसे दूर हुआ?
सत्ता इतना क्यूं क्रूर हुआ…..

जो आंधी से टकराता है ,
हर गम हंस कर पी जाता है।
अपनों के जीवन के खातिर,
मिट्टी से दांव लगाता है।
उनके जीवन को देख के भी,
निर्लज्ज चाल दिखलाता है।
किस भ्रम में तू मगरूर हुआ,
सत्ता इतना क्यूं क्रूर हुआ…..?

मौका है वचन निभाने का,
गलबहियां कर इठलाने का।
अहसानों का फर्ज अदा कर,
हक उनका भी है खिलखिलाने का।
प्रजातंत्र की राजनीति,
किस मद में इतना चूर हुआ।
सत्ता इतना क्यूं क्रूर हुआ……..?

वर्षों से जो कर्ज है तुम पर,
मौका है उसे चुका देना।
वो भोले हैं संतोषी हैं,
तुम अपना फर्ज निभा लेना।
सविनय कहता है, “भूषण”
मत बनना अब तुम खर-दूषण।
रावण है न ,वो राज्य रहा,
किसका तुम्हे गुरुर हुआ?
सत्ता फिर क्यूं इतना क्रूर हुआ….
सत्ता फिर क्यूं इतना क्रूर हुआ…..?

🙏एक किसान 🙏

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