छत्तीसगढ़

सर्वोच्च न्यायालय की चिंता जायज-उच्च न्यायालय में लंबित प्रकरणों की संख्या में बेतहाशा वृद्धि-जिम्मेदार अधिकारियों के विरूद्ध हो कार्यवाही

(मुख्य सचिव से छग.में लंबित अवमानना प्रकरणों के परीक्षण की संघ ने की मांग, अवमानना के लिए जिम्मेदारों को किया जाए चिन्हित)

रायपुर(khabar warrior)- देश के सर्वोच्च न्याय के मंदिर भारत के सर्वोच्च न्यायालय द्वारा भारतीय संवैधानिक व्यवस्था सस्ता, शीध्र, सुलभ न्याय देश के नागरिकों को मुहैया कराने की अवधारणा पर चिंतन करते हुए इस बात पर नाराजगी जताई है कि फालतू याचिकाएं हमें निष्क्रिय बना रहीं है। देश के सर्वोच्च न्यायाधिपति के युगलपीठ न्यायमूर्ति डी.वाई चंद्रचूड़ तथा जस्टिस एम.आर.शाह की पीठ ने यह टिप्पणी की है कि महत्वहीन मामलों की बाढ़ से समय बर्बाद हो रहा है।

छत्तीसगढ़ प्रदेश तृतीय वर्ग कर्मचारी संध ने सर्वोच्च न्यायालय के टीप को प्रदेश के परिप्रेक्ष्य में भी माननीय छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय, बिलासपुर में महत्वहीन प्रकरणों की बाढ़ पर राज्य सरकार को चिंतन करते हुए मुख्य सचिव से मांग की है कि छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय बिलासपुर में लंबित अवमानना प्रकरणों की समीक्षा करने व स्वाभाविक है कि माननीय उच्च न्यायालय द्वारा पारित आदेशों की अवहेलना कर उसका पालन न करने के कारण ही अवमानना प्रकरण प्रस्तुत होते है। इसलिए न्यायालयीन आदेशों की उपेक्षा करने वाले अधिकारियों को चिन्हित कर, कार्यवाही करने की मांग की है।

छत्तीसगढ प्रदेश तृतीय वर्ग कर्मचारी संध के प्रांतीय प्रवक्ता विजय कुमार झा एवं जिला शाखा अध्यक्ष इदरीश खाॅन ने बताया है कि प्रदेश में जिम्मेदार अधिकारी राज्य शासन के नियम निर्देशों के अनुक्रम में आम नागरिकों व शासकीय सेवकों को न्याय प्रदान न कर एक व्ययवस्था बना ली है कि हमने जो कर दिया सो कर दिया आपकों जहां जाना हो जावे। इसी मानसिकता के कारण अफसरशाही के अन्याय से पिड़ित पक्षकार निरंतर उच्च न्यायालय में याचिकाएं प्रस्तुत कर रहे है। यदि सामान्य याचिकाओं को छोड़ दे तो प्रदेश में हजारों की संख्या में राज्य शासन के विरूद्व अवमानना प्रकरण विचाराधीन है।

बढ़ती अवमानना के प्रकरणों से स्पष्ट है कि निर्णयकर्ता अधिकारी न्यायालयीन आदेशों की भी उपेक्षा कर रहे है। अपनी स्वेच्छाचारिता व हठधर्मिता से निर्णय कर रहे है। ऐसी स्थिति में मुख्य सचिव एक उच्च स्तीय समिति गठित कर एक न्यूनतम् समय सीमा में अवमानना प्रकरणों की समीक्षा कर, दोषी अधिकारियों को न केवल चिन्हित करें अपितु जो अधिकारी अनिर्णय के लिए दोषी है, या नियम प्रक्रिया का या तो बोध न हो या नियम प्रक्रिया के विपरित जानबूझकर निर्णय करते है, उनके विरूद्व अनुशासनात्मक कार्यवाही का प्रावधान सुनिश्ति करते हुए, पक्षकार के पक्ष में अंततोगत्वा न्यायालय आदेश पारित करती है, तो वाद शुल्क, अधिवक्ता शुल्क व अन्य याचिका तैयार करने में होने वाले व्यय की राशि उस अधिकारी से वसूलने की कार्यवाही करना सुनिश्चित करें तो संभव है कि अपने कर्तव्यबोध का संज्ञान हो और न्यायालय पालिका की भावना के अनुकूल निर्णय लें।

संध को अनेक त्वरित प्रकरण का संज्ञान है जिसमें नियम, कानून, प्रक्रिया के विपरित उच्च अधिकारियों द्वारा निर्णय लेने के कारण उच्च न्यायालय में याचिकाएं प्रस्तुत की गई है। ग्रामीण कृषि विस्तार अधिकारियों के पदोन्नति नियम के विपरित, माननीय न्यायालय के निर्देश के विपरित संचालनालय कृषि का पदोन्नति आदेश, नियम विपरित नर्स भर्ती में एक व्यक्ति को उपकृत करने तीन बार दावा आपत्ति मंगाकर पात्र को अपात्र कर, अपात्र को पात्र बनाकर नियुक्ति आदेश जारी करने, निर्वाचन कार्यालय में माननीय उच्च न्यायालय में लंबित याचिका के अंतिम निर्णय तक कोई नियुक्ति न करने.

कोई विज्ञापन जारी न करने के अंतरिम आदेश के विरूद्व न्यायालय में पिड़ित पक्षकारों द्वारा याचिका प्रस्तुत करने पर 6 वर्ष पुराने विज्ञापन के एक भाग को निरस्त करने व एक भाग को मान्य कर एक पद पर नियुक्ति करने, अविभाजित मध्यप्रदेश के संस्कृति विभाग के स्वीकृत सेटअप में मुख्य कलाकार का पद शामिल था, जिसे राज्य गठन के बाद छत्तीसगढ़ में विलोपित कर दिया गया, कलेक्टरों द्वारा पदोन्नति में आरक्षण व्यवस्था लागू न कर तथा आयुक्तों द्वारा आरक्षण व्यवस्था लागू कर पदोन्नति करने के विरोधाभासी निर्णय जैसे अनेक प्रकरण है, जो उच्च न्यायालय में अधिकारियों की उपेक्षा व मनमानी के कारण प्रस्तुत किए गए है।

इसलिए दोषियों की जिम्मेदारी निर्धारित करने की मांग संध के कार्यकारी प्रांताध्यक्ष अजय तिवारी, महामंत्री उमेश मुदलियार, संभागीय अध्यक्ष संजय शर्मा, ग्रामीण कृषि विस्तार अधिकारी संध के प्रांतीय अध्यक्ष एम.पी.आंड़े, संस्कृति विभाग के प्रांतीय संयोजक संजय झड़बड़़े, सुरेन्द्र त्रिपाठी, विमल चंद्र कुण्डू, आलोक जाधव, स्वास्थ संयोजक संध के प्रांतीय अध्यक्ष टार्जन गुप्ता, संभागीय सचिव प्रवीण ढीढवंशी आदि पिड़ित व न्यायालयीन पक्षकारों ने मुख्य सचिव से न्यायालयीन प्रकरणों में जवाबदेही निर्धारित करने व दोषियों के विरूद्व कार्यवाही व न्याय प्रक्रिया में हुए व्यय की वसूली करने की मांग की है। अन्यथा कर्मचारी संध जनता व कर्मचारी हित में जनहित याचिका दायर करने बाध्य होगा।

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