सामाजिक बहिष्कार के खिलाफ बने सक्षम कानून
रायपुर (खबर वारियर) अंधश्रद्धा निर्मूलन समिति के अध्यक्ष डॉ दिनेश मिश्र ने बताया छत्तीसगढ़ के कवर्धा में सामाजिक बहिष्कार का अमानवीय मामला देखने को मिला है, जहां एक व्यक्ति की मृत्यु के बाद उसका अंतिम संस्कार के लिए भी कोई आगे नहीं आया रज्जू मेरावी नामक व्यक्ति को अपनी पसंद का विवाह करने की ऐसी सजा मिली कि उसकी मौत के बाद समाज का कोई भी उसके शव को कंधा देने नहीं पहुंचा. मृतक की पत्नी रोती बिलखती रही और आखिरकार पत्नी ने ही स्वयं अपने पति का अंतिम संस्कार किया.
डॉ दिनेश मिश्र ने बताया कवर्धा जिले के पांडा तराई थाना क्षेत्र के गांव परसवारा निवासी 50 वर्षीय रज्जू मेरावी की मौत के बाद उसके शव को कंधा देने के लिए ना तो परिवार का कोई सदस्य सामने आया और ना ही समाज के किसी व्यक्ति ने सहयोग किया।
20 साल पहले रज्जू मेरावी ने इंदिरा बाई विश्वकर्मा से शादी कर ली थी,इससे नाराज होकर समाज ने रज्जू और उसकी पत्नी इंदिरा को समाज से बहिष्कृत कर दिया था।
समाज द्वारा हुक्का-पानी बंद कर दिए जाने के बाद रज्जू और उसकी पत्नी रोजी रोटी के लिए मजदूरी करने इलाहाबाद जाकर रहने लगे. इलाहाबाद में रहने के दौरान ही रज्जू की तबीयत बिगड़ गई,जिसके बाद पति का इलाज कराने के लिए उसकी पत्नी इंदिरा उसे लेकर वापस गांव आ गई।
गांव वापस लौटने के बाद ना इंदिरा को उसके मायके में आसरा मिला और ना ही समाज के किसी व्यक्ति ने मदद की।आखिरकार दंपति को गांव के आंगनबाड़ी में आसरा लेना पड़ा, जहां रज्जू की तबीयत बिगड़ती चली गई और आखिरकार 8 सितंबर को रज्जू की मौत हो गई।
रज्जू की मौत के बाद भी समाज के लोगों का दिल नहीं पसीजा और रज्जू के शव को कंधा देने के लिए कोई व्यक्ति आगे नहीं आया। रज्जू की पत्नी रोती बिलखती रही लेकिन इसके बावजूद पूरे एक दिन तक कोई मदद के लिए नहीं आया।आखिरकार 9 सितम्बर को मृतक के परिवारजनों से संपर्क किया गया , लेकिन कोई भी सहयोग करने को तैयार नहीं हुआ,मृतक की पत्नी ने स्वयं बुजुर्ग के शव का अंतिम संस्कार पुलिस कर्मियों के सहयोग से किया।
किसी भी व्यक्ति को मानसिक, शारीरिक रूप से प्रताड़ना देना,उस का समाज से बहिष्कार करना है अनैतिक एवम गम्भीर अपराध :
डॉ दिनेश मिश्र ने कहा देश का संविधान हर व्यक्ति को समानता का अधिकार देता है।सामाजिक बहिष्कार करना, हुक्का पानी बन्द करना एक सामाजिक अपराध है तथा यह किसी भी व्यक्ति के संवैधानिक एवम मानवाधिकारों का हनन है ।
प्रशासन को ऐसे मामलों पर कार्यवाही कर पीड़ितों को न्याय दिलाने की आवश्यकता है, साथ ही सरकार को सामाजिक बहिष्कार के सम्बंध में एक सक्षम कानून बनाना चाहिए,ताकि किसी भी निर्दोष को ऐसी प्रताड़ना से गुजरना न पड़े।
शासन से अपेक्षा है सामाजिक बहिष्कार के खिलाफ सक्षम कानून बनाने की पहल करें ताकि प्रदेश के हजारों बहिष्कृत परिवारों को न केवल न्याय मिल सके बल्कि वे समाज में सम्मानजनक ढंग से रह सकें।