विचार

क्या गरीबों को जीने का हक है ?

आलेख- संजय सिंह ठाकुर,

लाचार सिसकता मजबूत भारत के निर्माण का स्तंभ *गरीब मजदूर*भूखे, प्यासे, रोते बिलखते सैकड़ो किलोमीटर की यात्राएं कैसे कर रहा है, यह तो भगवान ही जानता है। *कोई पैदल जा रहा है। कोई सायकल से। कोई मालगाडी मे तो कोई गुड्स वाहन मे।*

आज सुबह बांदा (यूपी) के तीन भाई मेरे पास आए जो यही रहकर, छोटा-मोटा सब्जी, गन्ना रस वगैरह का धंधा करते है । बताया कि धंधे मे अब कमाई नही है, इसलिए सायकल से बांदा जा रहे है।

हम कुछ पल के लिए आवाक रह गये, फिर उन्हे समझाया कि कुछ दिन की बात है, रूक जाओ, बाद मे चले जाना। लेकिन वो मानने को तैयार नही हुए, आज जा रहे है।

उनके जाने के बाद मै काफी देर तक इस पर विचार कर काफी दुखी व उद्देलित हुआ कि *इतनी गर्मी मे जहाँ घर से निकलना मुश्किल हो रहा है। फिर इसी गर्मी मे सैकड़ो किलोमीटर की यात्रा उन्हे कितना कष्ट देगी।* रास्ते मे खाना-पानी मिलेगा या नही। इन्हें कहीं पकड के 14, दिन के लिए क्वारंटाईन कर दिए तब क्या होगा ? अनंत बाधाओं के दृश्य आंखों के सामने आ रहे हैं। ऐसी परिस्थिति में इनका जानते बूझते निकलना क्या जान पर खेलना नही है?

हड्डियों का ढांचा बने हजारो लोगो को देखो तो आत्मा कांप जाती है। दुर्भाग्यजनक है कि कुछ लोग भूख व प्यास से अपने घर से कुछ दूरी पर तो कुछ लोग बीच रास्ते मे अपने प्राण त्याग रहे है।

विश्व गुरु होने वाले देश मे कोरोना से जितने लोग मरेंगे वह तो मरेंगे। लेकिन यह निश्चित है कि भूख, कुपोषण व आत्महत्या से मरने वालो की संख्या भी इससे कम नही रहेगी।

एक महीने से उपर हो गये है, फिर अभी दूर तक लाक डाऊन समाप्त होने के कोई संकेत नही मिल रहे है। ऐसे मे *क्या सिर्फ सरकारी चावल व 500 रूपये से ( वह भी जिन्हे मिला है) जीवन यापन हो सकेगा।* सबसे चिंता जनक स्थिति असंगठित क्षेत्र के मजदूरो की है, जिनकी संख्या 40 करोड से अधिक है ।

काम छूट गया है। ऐसे में मालिक या ठेकेदार तो पैसे देने से रहा, फिर गुजारा कैसे होगा ? सरकार लाख घोषणा करे संस्थान पैसा देंगे परंतु *व्यवहारिक रूप से किसी को बैठाकर कोई कंपनी, मालिक या ठेकेदार द्वारा जो स्वयं अपनी परेशानियां गिनाते नहीं थक रहे हैं पारिश्रमिक देना संभव नहीं होगा।*

*सरकार सबसे पहले पेंडुलम की तरह झूलते, रास्ते मे फंसे, भूख-प्यास से जूझते मजदूरो की समुचित व्यवस्था करे।* अगर संभव हो तो उनके गावों तक पहुँचाने की व्यवस्था करे। उन्हे भूखे न मरने दे । *अन्यथा थोडा बहुत संविधान के प्रति जो आस्था लोगो मे बची है, वह भी समाप्त हो जाएगी।*

लोग देख रहे है अमीरों को प्लेन से व एसी बसोंं से उनके गंतव्य तक पहुंचाया गया है और पहुंचाया भी जा रहा है। तो *गरीबों को क्या खटारा बस मे भी जाने का अधिकार नही है ?*

*क्या नये भारत मे सिर्फ अमीरों को जीने का हक है।* गरीबों को जीने का कोई हक नही है ?

संजय सिंह ठाकुर
94790 10032

(लेखक दाण्डी यात्री, गांधीवादी चिंतक व सद्भावना, शांति विचारक है।यह विचार ई है)

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button