विचार

मजदूर को देखने का नजरिया,कोरोना का संकट काल और मई दिवस

आलेख-अमित चंद्रवंशी “सुपा”

हम अक्सर कहते है कोई काम छोटा-बड़ा नही होता है,वह करने वाले के नजरिया पर निर्भर करता है।जीवन में क्या करते है क्या नही यह हम पर होता है।

एक मजदूर की कहानी और किसान की कहानी में अंतर बहुत कम है, दोनों का काम है दुनिया को एक नई ऊंचाई तक लेकर जाना, वही दूसरे लोगो का काम भी दुनिया की इबारत लिखने की होती है, अपने आप को भुलाकर दुनिया के विकास की परिभाषा गढ़ते है।

मजदूरी करना कोई शर्म की बात नही है, काम के प्रति लग्न होना जरूरी है, हर वह इंसान मजदूर है जो दूसरो का काम करता है, मतलब दुनिया के लिए छोटे से छोटे से काम करता है। बस करने का तरीका अलग होता है।कोई आफिस में बैठकर सॉफ्टवेयर डेवलप करता है, कोई कारखाने में काम करता है। काम करने का तरीका डिफरेंट लेवल का होता है, हम समय पर विकास का काम करते है।

संघर्ष क्या सिर्फ एक आम काम करने वाले लोगो के जीवन मे होता है, हमसे कहीं ज्यादा एक रिक्शा चलाने वाले के जीवन मे होता है। रोज सुबह निकलता है, आज का बोहनी हो जाये और किराया मिल जाये, यही चिंता लगी रहती है।

आप अपने संघर्ष को किस हिसाब से देखते है किस दिशा में लेकर जाते है, यह पूरा आप पर निर्भर करता है। एक रिक्शा चलाने वाला भी काम करता है, बस हमारे देखने की स्थिति अलग है। एक अभिनेता भी काम करता है, जिसके बस में जितना काम है वह सब बखूबी निभा रहे है, ऐसे में मजदूरी करना और इसकी परिभाषा कहना दो डिफरेंट लेवल है।हम अपना शत प्रतिशत देते है वैसे ही डॉक्टर, टीचर व वैज्ञानिक भी अपना काम पूरी सिद्दत से करता है।

कोरोना काल नुकसान का काल है जिसे हम सदियों तक नही भुला पायेंगे, हम जीवन के उस दौर में जहाँ काम तो करना चाहते है लेकिन काम देने वाला कोई नही है। अलग अलग काम करना, जिनका रोज का काम होता है जो कमाते है उसे खाते है उनका बुरा हाल है लेकिन स्तिथि उतनी भयवाह नही है।

सरकार और NGO अपना पूरा दम लगाकर कोई भूखा न सोए, इस पर काम कर रहे है। कोरोना काल में बहुत से फैक्ट्री, होटल, बस व दुकानें आदि बंद है वहाँ काम करने वालो के हाथ खाली हैं, पैसे की तंगी अवसाद लाती है, आसपास देखने पर कोई नही है, और यही डरावना पल होता है, नया सपना लिए यह काल कैसे भी कटे, मजदूरों की हालात बहुत खराब हो रही है।

कोरोना काल में पलायन किये मजदूर वापस घर की ओर लौट रहे है, भूख लगी है,अपना घर अपना होता है, लोग घर जाने की चाहत से पैदल चल रहे है हजारों किलोमीटर की दूरी तय करके अपने घर की ओर लौट रहे है।

समय ही ऐसा है, खाली बैठकर क्या करे, ऐसा बहुत कम समय आता है, वहाँ जाकर फंसे है या लोकल मजदूर आदि को सरकार अपने तरफ से पूरी सुविधा दे रहे है लेकिन यह ऐसा समय है कोरोना से पीड़ित न हो जाने का भय घर की ओर बढ़ रहे है।

-अमित चन्द्रवंशी “सुपा”

(लेखक बीएससी अध्ययनरत हैं,यह विचार निजी है)

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