विचार

“अजीत” मरते नहीं, अमर हो जाते हैं…

प्रकाशपुंज पांडेय,🖍️🖍️

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“अजीत प्रमोद जोगी”, एक ऐसा नाम है जो कभी मर नहीं सकता, वे अमर हो गए हैं। उन्होंने तो सिर्फ़ अपनी देह त्यागी है और अनंत काल की यात्रा पर निकल चुके हैं लेकिन उनके किए हुए कार्य, उनकी कार्यकुशलता, उनकी राजनीतिक सूझबूझ, उनका दृढ़ संकल्प, उनकी वाकपटुता, लोगों से संवाद करने की उनकी कला और उनके जीवट व्यक्तित्व के लिए वह हमेशा सभी के दिलों में जिंदा रहेंगे। उन्होंने भारतीय राजनीति में जो मुकाम हासिल किया था वह सबके बस की बात नहीं है।

छत्तीसगढ़ में ही नहीं, बल्कि उनके प्रशंसक समूचे भारत में और विदेशों में भी हैं। उनके साथ काम किया हुआ छोटा ही सही लेकिन बेहद महत्वपूर्ण कार्यकाल को मैं जिंदगी भर नहीं भूल सकता हूं।

यह अजीत जोगी का आभामंडल ही था कि लोग परस्पर उनके प्रति आकर्षित होते रहते थे और खिंचे चले आते थे। मैंने यह लेख उनके जीवन का उल्लेख करने के लिए नहीं लिखा बल्कि उनके प्रति मेरे दिल में जो भावना और आदर है, उससे प्रेरित होकर लिखा है क्योंकि उनके जीवन पर तो ना जाने कितनी किताबें लिखी जा सकती हैं। यह लेख बहुत ही छोटा होगा उनके लिए। उनका व्यक्तित्व कई लोगों के लिए प्रेरणा था। उनके पास जो भी जाता था वे उनकी मदद जरूर करते थे। यह मैंने स्वयं देखा है और महसूस भी किया है। 2016 में जब उनकी नई क्षेत्रीय राजनीतिक पार्टी का गठन हुआ था तब मैंने उनकी पार्टी का मीडिया संभाला था साथ ही अजीत जोगी जी का ट्विटर हैंडल और फेसबुक भी मैं ही संभालता था।

मुझे आज भी याद है जब प्रतिदिन सुबह 11:00 बजे मैं उनके लाइब्रेरी में हाज़िर हुआ करता था और वहां से उनके साथ चर्चा करते करते सागौन बंगले में जो लोन है वहां केवल मैं और वो विचरण करने के साथ ही रोज़ के नए-नए मुद्दों पर चर्चा किया करते थे। उन्होंने मुझे कहा था कि ‘प्रकाश तुम्हारी लेखनी और सोच बहुत अच्छी है इसे अपने जीवन में कभी मत छोड़ना’ यह बात सोच कर आज भी मेरी आंखें नम हो जाती हैं।

मुझे याद है 15 अगस्त 2016 को जब मैंने एक मोबाइल के रिमोट से उनके साथ अपनी एक सेल्फी ली थी और रिमोट उनके हाथ में था तो वो बहुत खुश हुए थे। उस सेल्फी को मैं इस लेख के साथ साझा भी कर रहा हूं। वह मेरे लिए एक अविस्मरणीय समय था। मेरे जन्मदिन पर भी उन्होंने मुझे बहुत सी बधाइयाँ दी थीं तथा आशीर्वाद भी दिया था। लिखना बहुत चाहता हूं लेकिन दिल भरा हुआ है और आंखें नम है।

बस यही कहना चाहता हूं कि ‘अजीत मरा नहीं करते अजीत अमर हो जाते हैं’।

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