छत्तीसगढ़विचार

20 साल के ‘जवान’ “हमर छत्तीसगढ़”

होमेन्द्र देशमुख भोपाल📝


1967 में डॉ खूबचंद बघेल द्वारा छत्तीसगढ़ भ्रातृत्व संघ गठन कर राष्ट्रपति से पृथक छत्तीसगढ़ राज्य की मांग , बाद में चले कई व्यक्ति, संगठन, आंदोलनों- धरनों और 1994 में विधायक गोपाल परमार द्वारा मध्यप्रदेश विधानसभा में पारित अशासकीय संकल्प के बाद एक नया मौका छत्तीसगढ़ को मिलने का अवसर आया ।

अटल बिहारी बाजपेयी की सरकार में 31 जुलाई 2000 को लोकसभा और उसी 9 अगस्त को राज्य सभा मे मध्यप्रदेश राज्य पुनर्गठन विधेयक पारित होकर 25 अगस्त 2000 को भारत के राष्ट्रपति के आर नारायणन के हस्ताक्षर होते ही अधिनियम बना और पृथक छत्तीसगढ़ राज्य बनने की बधाई गाये जाने लगे ।

मध्यप्रदेश विधानसभा में अक्टूबर के पहले सप्ताह में विशेष सत्र बुलाकर केंद्र सरकार और राष्ट्रपति के पक्ष में आभार ज्ञापन किया गया । बड़ा भावुक क्षण था । भोपाल के नई विधानसभा में सदन की कार्यवाही भावनात्मक भाषणों में डूब गया । मुख्यमंत्री दिग्विजयसिंह के निकलते आंसू भी मैंने अपने कैमरे में कैद किया ।

पर दिग्विजयसिंह के आंसू अब ज्यादा निकलने वाले थे ।क्योंकि पृथक राज्य में आ रहे 90 विधायकों वाले राज्य में 60 विधायक कांग्रेस के थे और यहां भी नई सरकार कांग्रेस की ही बनानी थी ।

ज्वलंत सवाल था- कौन बनेगा मुख्यमंत्री. ?

आज से 20 साल पहले सन 2000 में तीन नए राज्यों का गठन हुआ था । मैं उस समय स्टार न्यूज़ का कैमरामैन था । मेरे संवाददाता संदीप भूषण, सहारा टीवी के ब्रजेश राजपूत, ज़ी टीवी के राजेंद्र शर्मा ,आजतक के  राजेश बादल सहित भोपाल के हम सब कई मीडिया कर्मी तीन दिन पहले से रायपुर पहुच गए ।

31 अक्टूबर 2000 ,इंदिरा गांधी की पुण्यतिथि के दिन ही शाम से छत्तीसगढ़ राज्य के निर्माण के मौके पर आधिकारिक जश्न की तैयारी रायपुर के पुलिस परेड ग्राउंड में शूरू हो गई थी । स्वतंत्र मध्यप्रदेश के पहले मुख्यमंत्री पंडित रविशंकर शुक्ल के पैतृक घर से चंद फासलों पर ,इसी मैदान में अगली सुबह नए राज्य छत्तीसगढ़ के पहले मुख्यमंत्री का शपथ होना था लेकिन मुख्यमंत्री कौन होगा यह निर्णय अभी भी नही हो पाया था । कुछ दिन से चली आ रही कयास बाजी और अनुमान आज नेताओं के जूतम पैजार तक पहुच चुकी थी ।

दिल्ली दरबार मे खिचड़ी तो पक चुकी थी लेकिन हांडी कौन उतारे इस पर अभी भी शंशय था । दिल्ली को भी सीधा, अजीत जोगी का नाम घोषित करने की हिम्मत नही हो रही थी । विद्याचरण शुक्ल के अलावा दूसरा कोई नाम सामने नही आ रहा था , मोतीलाल वोरा भी नही ।

कहने को तो बटवारे में आये छत्तीसगढ़ के कांग्रेसी विधायकों को ही अपना नेता चुनना था लेकिन दस जनपथ में आदेश का इंतज़ार कर रहे मप्र के तत्कालीन मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह को दोपहर 2 बजे केवल अजीत जोगी का नाम मिला । स्थानीय विधायकों के साथ समन्वय कर दिल्ली की हांडी रायपुर में उतारने का दायित्व दिया उन्हे ही दिया गया था ।

किं कर्तव्य विमूढ़..! ‘आश्चर्य किंतु सत्य’ ।अनहोनी के संकट से घिरे , बिना सवाल किए दिल्ली से पर्यवेक्षक गुलाम नवी आज़ाद के साथ माना एयरपोर्ट पहुचे दोनो नेता शाम चार बजे विद्या भैया के फार्महाउस घुस गए । उन्ही को मनाना ज्यादा जरूरी था । पर विद्याचरण शुक्ल के समर्थक इस प्रक्रिया से सहमत नही थे ।

हम सब शंकर नगर मार्ग में नहर किनारे नए सीएम के लिए पुनरसज्जित तत्कालीन कलेक्टर बंगले में भोपाल से निकले कई विधायकों सहित बाकी सारे विधायकों के आने का इंतज़ार कर रहे थे । इस बंगले में कभी आई ए एस , पूर्व सांसद कांग्रेस नेता , दस जनपथ के कोर टीम के सेनानी अजीत जोगी बतौर कलेक्टर कभी रह चुके थे ।

अचानक खबर आई कि यहां आने से पहले विद्या भैया के फार्महाउस में दिग्विजय सिंह  का किसी ने कुर्ता फाड़ दिया ।

फटाफट वहां पहुँचे तो दिग्विजय सिंह गाड़ी में बैठकर रवाना होते दिखे । पीछे पीछे दिग्विजय के कैबिनेट में तब तक स्वास्थ मंत्री रहे अशोक राव तमतमाते हुए पीछे आते दिखे ।
अंदर जाकर विद्या जी से कथित घटना की जानकारी लेने मीडिया की भीड़ लग गई ।
बात कुछ नही-कुछ नही कह कर आई गई हो गई लेकिन वहां से लौटकर कुछ विधायकों के साथ मीटिंग शाम तक होती रही । और शंकर नगर मार्ग पर नए मुख्यमंत्री के लिए सजे उसी बंगले में देर शाम प्रेसवार्ता कर जोगी जी का नाम स्वतंत्र छत्तीसगढ़ राज्य के पहले मुख्यमंत्री के रूप में घोषित कर दिया गया ।

विभाजन से पूर्व ,1998 में संयुक्त मप्र के तत्कालीन ग्यारहवीं विधानसभा में कांग्रेस की दिग्विजय सरकार बनाने में छत्तीसगढ़ के कांग्रेस से बहुतायत में जीत कर भोपाल गए विधायकों का हाथ था । यहां के जालम सिंह पटेल, रविन्द्र चौबे , धनेश पाटिला, अशोक राव, सत्यनारायण शर्मा, रविन्द्र चौबे, भूपेश बघेल आदि को महत्वपूर्ण विभागों की जिम्मेदारी देकर मंत्री पद से तब मुख्यमंत्री दिग्विजयसिंह ने नवाजा था । यहां के ये विधायक दिग्विजय सिंह के बड़े विश्वासपात्र बन चुके थे , बल्कि भोपाल में तो मप्र के दूसरे क्षेत्र के विधायक दिग्विजय कैबिनेट को मज़ाक और ताने मारकर छत्तीसगढ़ केबिनेट कह देते थे । मैं उसका सशक्त गवाह भी था ।

दिग्विजय सिंह से यही नजदीकी ने पृथक छत्तीसगढ़ में नए मुख्यमंत्री के मनोयन से चयन में , सम्भावित ज्यादा विरोध को बढ़ने नही दिया और जोगी जी ने अगली सुबह इस नए नवेले राज्य के पहले मुख्यमंत्री के रूप में शपथ ली और साथ ही भारत के राज्यों का भौगोलिक और राजनैतिक मानचित्र बदल गया ।

आज बस इतना ही..

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(लेखक न्यूज़ चैनल में सीनियर वीडियो जर्नलिस्ट हैं)

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