छत्तीसगढ़विचार

“कही-सुनी”:- वरिष्ठ पत्रकार रवि भोई की कलम से

(18 अप्रैल -21)

“कही-सुनी”

   रवि भोई✍️


छत्तीसगढ़ में क्यों फैला कोरोना ?

छत्तीसगढ़ में कोरोना संक्रमण की भयावहता के पीछे कई कारण गिनाए जा रहे है। भाजपा के नेता और कुछ लोग रायपुर में 05 से 21 मार्च से तक हुए रोड सेफ्टी वर्ल्ड सीरीज क्रिकेट मैच को कारण मान रहे हैं। इस बीच छत्तीसगढ़ चैंबर आफ कामर्स एंड इंडस्ट्री के चुनाव का धूमधड़ाका भी रहा। कुछ लोग ऐसे भी हैं जो एक समुदाय के कार्यक्रम को कारक मान रहे हैं। समुदाय के कार्यक्रम को कोरोना का वाहक मानने वालों में सरकारी तंत्र में शामिल कुछ लोग भी हैं।

कहते हैं समुदाय के कर्ताधर्ता और अन्य लोग महाराष्ट्र के यवतमाल होते हुए छत्तीसगढ़ आए। रायपुर में कार्यक्रम का आयोजन भी किया गया। महाराष्ट्र में जनवरी-फ़रवरी से ही कोरोना की दूसरी लहर के केस आने लगे थे। छत्तीसगढ़ की सीमा खुली थी। वे लोग बिना-रोक टोक के राजनांदगांव-दुर्ग होते रायपुर आए। कहते हैं समुदाय के कुछ कर्णधारों ने सरकार के उच्च पदस्थ लोगों से भेंट -मुलाकात भी की।

माना जा रहा है कि समुदाय के लोग दुर्ग में कई लोगों का आतिथ्य भी स्वीकार किया। अब कारण जो भी हो, छत्तीसगढ़ में कोरोना संक्रमण ने रिकार्ड तोड़ दिया है। गांव-शहर कुछ भी अछूता नहीं है। सर्वाधिक कोरोना संक्रमित पांच राज्यों में छत्तीसगढ़ भी शामिल है। राज्य में कोरोना से मृत्यु दर भी उच्च स्तर पर है।

न क्राइसेस मैनेजमेंट, न टीम

वैसे तो देश इस वक्त संकट में है, पर हम छत्तीसगढ़ के संकट की बात करें। छत्तीसगढ़ में फिलहाल रोजाना 12 से 15 हजार कोरोना संक्रमित आ रहे हैं और मौत का आंकड़ा भी प्रतिदिन सौ को पार कर जा रहा है। अस्पतालों और शवदाह गृहों का मंजर तो दिल दहलाने वाला है।

आमतौर पर संकट से निपटने के लिए क्राइसेस मैनेजमेंट होता है और क्राइसेस मैनेजमेंट टीम बनाई जाती है। छत्तीसगढ़ सरकार ने क्राइसेस मैनेजमेंट टीम बनाई है या नहीं पता नहीं, पर क्राइसेस मैनेजमेंट टीम नजर नहीं आ रही है। ख़बरों और आदेशों से तो ऐसा लग रहा है सब कुछ कलेक्टरों पर ही छोड़ दिया गया है। एक-एक कर 22 जिलों के कलेक्टर अपने-अपने जिलों में लाकडाउन लगा चुके हैं। लाकडाउन में कोई आगे चल रहा है तो कोई पीछे। पर बड़ा सवाल यह भी है कि सरकार ने जिलावार प्रभारी मंत्री और प्रभारी सचिव भी बना रखे हैं। वे इस संकट की घडी में नजर क्यों नहीं आ रहे हैं या उनकी क्या भूमिका है ?

क्या सरकारी बैठकों या सरकारी योजनाओं की समीक्षा तक ही उन्हें सीमित रखा गया है। ऐसा नहीं तो प्रभारियों को मोर्चे पर क्यों नहीं भेजा जा रहा है ? अधिकारों के विकेन्द्रीकरण के साथ संकट के समय अधिक लोगों की सहभागिता और सहयोग के नतीजे सकारात्मक ही होते हैं।

असम के कैंडिडेट्स और राजनीति

चर्चा गर्म है कि नतीजे के बाद किसी तरह के तोड़फोड़ की आशंका के चलते असम में भाजपा के खिलाफ चुनाव लड़ने वाले कुछ उम्मीदवार छत्तीसगढ़ लाए गए हैं और कुछ आने वाले हैं। ये कैंडिडेट्स भाजपा के विरोध में खड़े हुए थे। ऐसे में स्वाभाविक है कि उन्हें यहां कांग्रेस का साथ मिला होगा।

राज्य में कांग्रेस की सरकार है और छत्तीसगढ़ भाजपा को कांग्रेस को घेरने के लिए एक मुद्दा मिल गया। भाजपा नेता और पूर्व मंत्री केदार कश्यप ने असम चुनाव के कैंडिडेट्स को बस्तर के चित्रकोट रेस्ट हाउस में ठहरने का वीडियो सोशल मीडिया में डाला है। हालांकि कांग्रेस के नेता उसे पुराना वीडियो बता रहे हैं।

चर्चा है कि ये कैंडिडेट्स पहले राजधानी के एक आलीशान होटल में ठहरे थे, पर होटल मालिक ने केंद्र सरकार से संबंध ख़राब होने के भय से होटल खाली करने का आग्रह किया। कहते हैं इसके बाद इन कैंडिडेट्स को वीआईपी रोड के एक फार्म हाउस में ठहराया गया। फार्म हाउस का मालिक बड़ा कारोबारी है , उसे कुछ लोगों ने आयकर विभाग की नजरों में आने का भय दिखा दिया। कहते कारोबारी ने भाजपा के एक पूर्व मंत्री से इस बारे में राय भी ली। कहा जाता है भाजपा नेता ने भी उसे लफड़े में न पड़ने की सलाह दी। इसके बाद कारोबारी ने कैंडिडेट्स को ठहराने की व्यवस्था में लगे व्यक्ति के सामने हाथ-पैर जोड़े और झंझट से मुक्त करने का आग्रह किया। इसके बाद कैंडिडेट्स को बस्तर रवाना कर दिया गया।

चांदी काटते प्राइवेट अस्पताल

डाक्टरों को भगवान का रूप माना जाता है, इसलिए कि वे लोगों का जीवन बचाते हैं, पर छत्तीसगढ़ में प्राइवेट अस्पताल वालों ने कोरोनाकाल में डाक्टरों की नई छवि लोगों के सामने पेश कर दी। प्राइवेट अस्पताल वाले सेवा को धंधे में बदल दिया और लोगों की जेबें ढीली करना ही अपना धर्म मान लिया। सरकार ने लोगों को निजी अस्पतालों और जाँच केंद्रों के प्रहार से बचाने के इलाज और जांच की दरें तय कर दी है।

संकट की घडी में सरकार द्वारा तय दरें भी लोगों को भारी लग रहा, फिर भी अपनों को बचाने के लिए लोग मन मारकर और दुख झेलकर व्यवस्था कर रहे हैं , लेकिन कई अस्पताल सरकार की दरों को नहीं मान रहे हैं या फिर सरकार द्वारा निर्धारित दरों पर इलाज कर भी रहे हैं तो मरीजों का कान दूसरी तरफ से पकड़ रहे हैं। दूसरी तरह की जाँच और इलाज के नाम पर मरीज के परिजनों को मोटा बिल थमा रहे हैं।

आम लोगों के लिए कोरोनकाल कहर बनकर टूट पड़ा है , पर प्राइवेट अस्पतालों और कालाबाजारी करने वालों के लिए तो यह सुनहरा अवसर बनकर आया है। इन सबके बाद भी प्राइवेट अस्पतालों में पैर रखने को जगह नहीं है, इसलिए वे चांदी काट रहे हैं। कहते हैं कोरोनकाल में रायपुर के एक प्राइवेट अस्पताल के मालिक ने इतना कमा लिया कि वह एक आलीशान शादी हाल खरीदने की दौड़ में शामिल हो गया है। चर्चा है कि शादी हाल की कीमत 150 करोड़ के आसपास है।

संकट में भी राजनीति

कहते हैं न कुत्ते की पूंछ कभी सीधी नहीं होती। ऐसा ही कुछ राजनेताओं के साथ है। महामारी की विभीषिका में भी छत्तीसगढ़ के राजनीतिक दलों के नेता बयानबाजी और एक-दूसरे के कपडे उतारने में लगे हैं। भाजपा ने सर्वदलीय बैठक में स्वास्थ्य मंत्री की गैरमौजूदगी को मुद्दा बना दिया तो कांग्रेस ने सर्वदलीय बैठक में भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष की अनुपस्थिति पर सवाल खड़ा कर रहा है।

सर्वदलीय बैठक तो राज्य में कोरोना संक्रमण से निपटने और जनता को महामारी से बचाने के उपायों पर चर्चा के लिए बुलाई गई थी, फिर किसी की गैरहाजरी पर बहस से नेताओं की मंशा पर ही सवाल खड़े होते हैं। इन दिनों नेताओं को कोसते सोशल मीडिया पर कई वीडियो और कमेंट्स देखे जा सकते हैं। इस कारण नेता वक्त की नजाकत व जनता के दर्द को समझे और चीजों को राजनीतिक चश्मा हटाकर देखने की कोशिश करे। यह समय राजनीति करने का नहीं है। लोगों के दुख-दर्द को बांटने और राजनीति से ऊपर उठकर सोचने का समय है।

(-लेखक, पत्रिका समवेत सृजन के प्रबंध संपादक और स्वतंत्र पत्रकार हैं।)

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