छत्तीसगढ़

एसएमएस-1 और बीबीएम फिर से शुरू करना टुकड़ों में बीएसपी के निजीकरण की साजिश तो नहीं…?

जन अधिकार अभियान समिति ने भिलाई को बचाने राष्ट्रपति से लगाई गुहार

भिलाई ; जन अधिकार अभियान समिति ने उठाए सवाल, राष्ट्रपति से लगाई गुहार, जनमत से एकजुटता का आह्वान

भिलाई(खबर वारियर)- आचार्य नरेंद्र देव स्मृति जन अधिकार अभियान समिति छत्तीसगढ़ ने भिलाई स्टील प्लांट में बंद हो चुकी इकाईयों स्टील मेल्टिंग शॉप-1 (एसएमएस-1) और ब्लूमिंग एंड बिलेट मिल (बीबीएम) को फिर से शुरू किए जाने की कवायद पर सवाल उठाए हैं।
समिति का मानना है कि दोनों इकाईयों को बंद करने में मैनेजमेंट को जितना खर्च करना पड़ा, उससे कई गुना खर्च इसे फिर से शुरू करने में लगेगा। समिति ने आशंका जाहिर की है कि इसे फिर से चालू कर निजी कंपनियों को सौंपने की कवायद की जा रही है।

समिति के संयोजक आर पी शर्मा ने इस संबंध में राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद को पत्र भेज कर भिलाई स्टील प्लांट सहित तमाम सार्वजनिक उपक्रमों को बचाने की गुहार लगाई है। अपने पत्र में उन्होंने कहा है कि इस्पात मंत्रालय और स्टील अथारिटी ऑफ इंडिया लिमिटेड (सेल) में अदूरदर्शिता पूर्ण निर्णय लेने वाले मंत्री-अफसरों की वजह से पहले ही कंपनी बुरे दौर से गुजर रही है। ऐसे में इन दोनों इकाईयों को फिर से शुरू करने की कवायद के पीछे भी निजी क्षेत्र के पक्ष में कार्य करने जैसा कदम दिखाई देता है।

शर्मा ने कहा है कि अव्वल तो इन दोनों उत्पादक इकाईयों को बंद करने का निर्णय ही हास्यास्पद था। फिर भी वित्तीय क्षेत्र से आने वाले सेल चेयरमैन अनिल कुमार चौधरी ने इस तकनीकी फैसले को सही ठहराने भिलाई प्रवास के दौरान कई हास्यास्पद दलीलें भी दी थीं ।

अंतत: कोविड संक्रमण के दौर में मार्च-2020 में दोनों इकाईयों को पूर्ण रूपेण बंद कर दिया गया। इसके बाद से यहां इन दोनों इकाईयों में भर्राशाही और भ्रष्टाचार ने जमकर अपनी पैठ बनाई। जैसे कि अब जानकारी आ रही है कि यहां अफसर, कर्मी और ठेकेदारों की आपसी मिलीभगत से कई बेशकीमती कलपुर्जे और मशीनरी को चोरी करवा दिया गया। इससे राष्ट्र की अरबों रूपए की संपति को नुकसान पहुंचाया गया।
इन दोनों इकाईयों से निकाले गए कल पुर्जे और मशीनरी को फिर से खरीद कर लगवाना बेहद खर्चीली और लंबी प्रक्रिया है। संयोजक आर पी शर्मा ने कहा है कि बाजार की जिस स्थिति का बहाना कर इन दोनों इकाईयों को फिर से शुरू करने कवायद की जा रही है, उसकी क्या गारंटी है कि यह स्थाई है। अगर कल बाजार में उतार आया तो क्या फिर से इन दोनों इकाईयों को बंद कर दिया जाएगा?

शर्मा ने आशंका जताई कि एक सोची-समझी रणनीति के तहत इन दोनों इकाईयों को नए सिरे से चालू कर इन्हें निजी क्षेत्र को सौंपा जा सकता है। पूर्व में भी भिलाई स्टील प्लांट की कोक ओवन बैटरी का संचालन निजी क्षेत्र को सौंपने की कवायद की जा चुकी है।

हालांकि अभी तक यह कोशिश सफल नहीं हुई है लेकिन जब मौजूदा सरकार दुर्गापुर और सेलम स्टील जैसी इकाईयों का निजीकरण कर सकती है तो फिर भिलाई स्टील प्लांट का निजी करण टुकड़ों मेें करना उसके लिए कोई बड़ी बात नहीं है। उन्होंने इस मुद्दे पर जनमत से प्रतिरोध के लिए एकजुट होने की अपील की है। उन्होंने कहा कि भिलाई स्टील प्लांट सहित तमाम सार्वजनिक उपक्रमों की जमीनें महामहिम राष्ट्रपति के नाम से अधिग्रहित की गई थी, इसलिए अब आखिरी उम्मीद राष्ट्रपति से बंधी है कि इन सार्वजनिक उपक्रमों को बचाने के लिए सकारात्मक पहल करेंगे।

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